Tuesday 24 July 2012

क्यूँ मेरी ख्वाहिशों को तमीज़ नही होती..???


क्यूँ मेरी ख्वाहिशों को तमीज़ नही होती,
चाहें वो तारा जिसकी तर्वीज़ नही होती ।

तोड़ तो लूँ, , पर जो नीयत है वो तज्वीज़ नही होती,
पहनूँ, लिबाज़ असल सा, वो कमीज़ नही होती ।
वो चार गज़ का कफन है .........
जो अभी पहनूँ तो दरकारे मुफ़ीज़ नही होती ।

ज़िन्दगी छोड कर ज़िस्म में रुह बनी रहे.........
ऐसी कोई चीज़ कायनात में इल्म पे काबिज़ नही होती ।

खुद के ख़ामियाज़े, खुद को ही भुगतने पड़ते हैं.........
बारहाँ मिले हकीम का नुस्खा, ऐसी रहमतेमरीज़ नही होती ।

कोई भी लगाओ तरकीब, तकरीबन भी न बन पाये,
अगर ख्वाहिशों को तमीज़ नही होती .............।




तर्वीज़ =प्रचारित,प्रचलित
तज्वीज़ = कोशिश,योजना,प्रयत्न,फ़ैसला
मुफ़ीज़ =यश देने वाला
रहमतेमरीज़=मरीज़ के लिये दुआ

 अनुराग त्रिवेदी .. एहसास तारिख : 24/07/2012


Saturday 21 July 2012

वक्त और अपने की पहचान ..........!!!!!!!!

वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये, साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे ?  कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है । 
जब शिकायत करना है , तो किसी को कमज़ोर बताया जाता है ।
गिरगिट की तरह बदलती है रंग जिन्दगियाँ देखो तो !
आज हँसते को रुलाते, रोने वाला कभी किसी की खिल्ली उड़ाता है ।

ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।

यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।

वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।

गिरगिट की तरह बदलती है रंग जिन्दगियाँ देखो तो !
आज हँसते को रुलाते, रोने वाला कभी किसी की खिल्ली उड़ाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।

यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।

वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।

ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।

वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।

यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।

वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
अपना समझ किसी की तरफ हाथ बढ़ाओ !वो झटक कर बढ़ जाता है ।
ये दौरे जहाँ रफ्ता रफ्ता कितना अजीब हो चला है कि देखो तो !

ये दौरे जहाँ रफ्ता रफ्ता कितना अजीब हो चला है कि देखो तो !
नकाबपोश इँसा ,नकाबों  को  हर  रोज इकट्ठा किये जाता है ।
बेकार है .... दौरे जहाँ में सरफराज़ी से शिकायत करना अब तो !
इंसानियत की इबारत है ,  अज़नबियों में रहम दिल कोई मिल जाता है ...।

Wednesday 18 July 2012

जब दर्द से रिश्ता बन जाता है ..................!!!!!!!


कुदरत भी क्या कयामती सूरत दिखाती है ,
मेरे चोट के ऊपर चोट बारहाँ लग जाती है ।

दर्द के साथ ही सौदेबाजी करता हूँ , अब
राहत की चाहत भी मुझे नही हो पाती है ।


नही है ख्वाहिश मलहम कोई लगायेगा,
ज़ख्मों से इश्क करना अदा बन जायेगा ।

बडे नेक दिल बनते हो ना, अभी तो अनदेखा किया,
बस तुम्हारी नज़र बदली और चोरी पकड जाती है ।


जज़्बाती बन मिलते थे किस कदर मुझसे ,
पर करतूत तुम्हारी खिल्ली उडाती है ।

** : छोडो भी ना उस्ताद ! ये क्या ले कर बैठ गये ?
मेरे खुले ज़ख्मों से यही आवाज़ समझाने आती है ।

कहते हैं :
एक से एक मिला कर ग्यारह होता है ,
हमारी दोस्ती ऐसी है , अब ...
किसी और का साथ गँवारा नही होता है ,

बस ख्यालो की मियाद बढी ,
और सोच बदल जाती है ।

सच कहूँ तो आह! निकल आयेगी हलक से ,
असल ज़िन्दगी की तरावट तो , ज़ख्मो के जायके में आती है

खाटी, तीखी, मसालेदार ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी कहलाती है........

अनुराग त्रिवेदी ...

एक फरियाद !!!

कोई सूरतेहाल तो करार का हो,
इक लम्हा बेहद भरा प्यार का हो ।
कभी तो नेक दिल बन ,ऐ मेरे ख़ुदा !
कोई अपना ना अपने से कभी हो जुदा ।
आखिर बिछ्ड़ते हैं एक रोज़ सभी ,
साँसों की डोर है जब तक बंधी ।
एक दूजे की यादों में डूबे इस कदर,
लगे तमाम गहराईयां समेटे बैठा हो....


फिर, जज़्बात में उथल पुथल सी बनी रहे,
जैसे जो नही हुआ, वो अभी..बस अभी.... हुआ हो ।
अब तो तुझ पर से भी ऐतबार उठ रहा है ,
अगर...कहीं होता है ऐसा ख़ुदा
तो ऐसी ख़ुदाई से रखो मुझे ज़ुदा ..

जिस तरफ देखो ख़ुशियों के झूठे चिराग़ जल रहे ,
किसी आग में जिन्दगियाँ तप रही ..
और ना जाने कितने अनदेखे से ज़ख्म पल रहे ।
लगे अनमोल पंचतत्व मिट्टी को ही
मिट्टी में मिलाने की जुस्तजू कर रहे,

या रब ! सुन मेरी फरियाद एक लम्हे के लिये ही सही..
ज़हीन बना दे , जो रास्ते से भटक रहे..

आखिर कब तलक तेरी सीढ़ियों को रंगे लहू धोयेंगे
क्या तेरे हाथों में भी धब्बे के निशान ना उभरेंगे..

अब तो लगे.. लड़ पडूँ मै तुझसे .
कैसे कहूँ किसी को कि हाफ़िज़ रहे ख़ुदा..
जब ख़ुदाई के फ़लसफ़े से तू ही है जुदा..

हर पल बस यही गुहार है ...
सुन ले ये दिल की पुकार है ..
कोई सूरतेहाल तो करार का हो ,
इक लम्हा बेहद भरा प्यार का हो ।
अनुराग त्रिवेदी " एहसास ....!"
आखिर, जो करते करते हैं और.........किया क्या करते है ??

हम हकीमों को नुस्खा देने की तमीज़ रखते हैं ,
बेशक हम पतलून पहनते, खीसे नही रखते हैं ,
हमारी कमीज़ पर सिलवटें नही आ पाती हैं ,
हुनर बडी चट्टानों को उठा फ़ेंकने का रखते है ,

भले .. ऐहतराम न हो , तुम्हे.......
भले, इत्त्फाक न हो , तुम्हे........

हम गमों को भेड़-बकरी की तरह चराने की जुस्तज़ू रखते है |

**
बडे हवाले देते हो ना ख़ुदा की ख़ुदाई के,
पर साहिबान! न जाने कितने फरिश्तों को जेब में लिये घूमते हैं...
ख़ाक डालो, बन्दगी के पुराने फ़लसफ़े को
मेरी नज़र में, ज़हीन वो ,
जो चन्द लम्हों के लिये
गरीब के बच्चे का दिल रखते हैं.....
ख़ुशी से कमज़ोर का हाथ थाम लो
यही इंसानियत का सबक दिया करते हैं |

**
तो बोलो....??
पत्थरों में ख़ुदा ढूँढने वाले ..

क्या ? बुरा हम किया करते है ??
हाँ !!!
..
बोलो भी ... ?

**
नही है, गुज़ारिश कोई साथ आये
जो सफर पे पहला कदम अकेले निकाला
फिर मंजिल के लिये अकेले सफ़र करते हैं ..
आफ़रीन !!!!
जल्द मुकम्मल हो सफ़रे रोज़ ..
मंजिल तक जाते हुये यही दुआ करते है ..
है नही साथ कोई तो क्या..
अपना हमकदम, हमसफर, हमराज
एक-एक तलवे पे पढ़े छालो को बना लिया करते हैं ..
सभी फट कर किसी ज्वालामुखी से लावे बहाते
ऐसा लगे, जैसे छाले भी पुराने दोस्त की तरह शिकायत किया करते हैं
महरुम रहो मलहम से तुम ,
हम तुम्हे नज़ारने मे ..
और तेज़ .. और तेज़ .... रफ्तार दिया करते हैं
आखिर, जो करते करते हैं और...........

किया करते हैं ????

अनुराग त्रिवेदी "एहसास "