Wednesday 27 February 2013

ye aankhe (ये आँखें ....! )

ये आँखें  ......!
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Saturday 23 February 2013

आदम .. का निकलता दम !!!!


धमाकों से धमकाता है पर इंसानी हौसला टूट नही पाता है ...
टूटे कैसे? किस तरह पेट में जिन्दा ज्वालमुखी वो पालता है ।
मजहबी आग तो शीतल कक्ष में बैठा बन्दा लगा पाता है ...
वो जल रहे हैं, अपनी आग से !
उन पर लपटों से फर्क नही पड़ पाता है ।
झुलसा के खाक तो महँगाई करती है !
बम भला क्या जले को जला पाता है ?
बडे मुआवजों की घोषणायें होतीं ...
घर से बंधी आस लिये, दफ़्तर पहुँच के,
चक्कर के लम्बे चक्करों में पड़ जाता है |
भर जाती हैं, किताबी बहियाँ दफ़्तरों में
राशि चचेरे /मौसेरे को बाबू/अधिकारी दिलवाता है ।
आतंक किसे उड़ायेगा मेरे देश में ...
तंत्र खुद पंतग सा जन-जन को उड़ाये चला जाता है ।
कल्पनाओं-परिकल्पानों में संतरंगे गगन सजे !
जमीन तो लहुलुहान इंसान किये चला जाता है ।
चुनावी दौर में फरेबी भीड़ लगाते नेता !
वैसे ही फरेब का भाषण दे कर निकल जाता है |
भाषण ही जैविक बम बन गये हैं ...
सुन कर ही आम इंसान जल के भस्म हो जाता है ।
सब पर कर्ज चढ़ा इतना कि !
राशन का रास्ता छिपते-छुपाते तय करता है ।
हालातों से टूट कर, राहत की चाहत लिये,
बंदा कुंडलियाँ और हथेली पढ़वा के लुटा जाता है ।
क्या कहें ........?
कैसे एक चमन, वीराने में तब्दील हो जाता है !

अनुराग त्रिवेदी "एहसास"
* अपने विचार अवश्य लिखें , मेरी मेल आई डी है : ehsaascreation@gmail.com