जाड़े की सर्द रात और साथ में तेज़ शीत हवायें .....। घर के सामने की सड़क के उस पार कपास और यूकेलिपटस के पेड़ों की बीच में बनी झोपड़ी से आती अजीब सी ठक-ठक की आवाजें …तेज़ हवाओं की सरसराहट से मिलकर, भयावह माहौल बना रही थीं । डरते-सहमते, खिड़की के शीशों से नज़र आती झोपड़ी की तरफ देखकर सोने का प्रयास कर रहा था मैं ।
देर रात, सपनें में डर से काँपा तो माँ ने साँई की विभूती माथे पर लगा दी । सुबह सब भूल गया, पर स्कूल जाते समय फिर मेरी नजर उस झोपड़ी पर टिक गयी ।
कमान सी टेढ़ी कमर, भूरी-भूरी आँखें और झुर्रीदार चेहरे वाली बूढ़ी काकी उसी झोपड़ी में अकेले रहती थी, जो उस समय झाड़ू लगा रही थी और हम लोगों को लगभग घूरती नजर से बीच-बीच में देखे जा रही थी | जब साथ चल रहे दोस्तों से उसके बारे में पूछा तो उन्होने कहा- “सब कहते हैं .... उधर वो चुड़ैल …रात में एक बच्चे का सिर कूटती है......और कोई जादू-टोना और काला जादू भी करती है !” सुनते ही मै डर साथ ले कर स्कूल गया और जब लौटा तो नजर फिर उस झोपडी पर पड़ी ।
रात गये फिर उसी डर के साथ सोया । जब रात में नींद में कोई डरावना सपना देख कर काँपने लगा तो माँ ने झिंझोड़ के उठाया और पूछा :- "का हुआ ....काहे डर रहा है.. ?” मैने सहमते हुये उंगली उठा उस झोपड़ी की तरफ इशारा किया, फिर माँ हँसी और बोली :- "अरे ! वो बनारसी काकी का घर है, वैद्य जी के भगवान के पास जाने के बाद जब कभी अपने अकेलेपन से ऊब जाती है तो दवा बनाने लगती है, हम सभी के लिये ……और वही तो तू भी खाता है शहद के साथ ! जिससे कि मेरे लाडले को सर्दी नहीं लगती है !” मैं भी सुन कर मुस्कुराया और माँ के पेट पर हाथ रख कर मीठी नींद सो गया ।
सुबह जब उठा तो बगीचे से निर्भीक होकर झोपड़ी की तरफ देखा और स्कूल जाते वक्त रात की पूरी मिठास होंठों पर चिपका के मन्द-मन्द मुस्कुरा दिया काकी को देख कर ! वो अचम्भित हो कर देखने लगी और ज्यूँ ही वो मुस्कुराई .. उनके पोपले गाल और खिलखिलाती हुई सी झुर्रियाँ मुझे अब तक हर्षाती हैं ।
डर तो मेरा उस दिन खत्म हो गया पर एक प्रश्न साथ मेरे बड़ा हुआ .. क्योँ किसी की वेदना समझे बिना, संवेदनहीन होकर मनगढ़ंत कहानियाँ बना दी जाती हैं ?
क्यों ????
लघु-कथा व रेखा-चित्र : अनुराग त्रिवेदी ‘एहसास’
nakaratmak urja ko log jyada bahar karna chahte hain
ReplyDeleteपूर्णत: सत्य ... !
Deleteह्र्दय से आभार !
kyunki insaan ek kauff naam ki cheez se hi drtaa hai... aur insaan ko is darr mein sulaakr rkhnaa bdaa hi aasaan kaam...aur fayedemnd bhi.... !! aur aajkl.....sir bhavnayon ki ...sanvednao ki tuo baat hi mat kriye....kisi k liye kahan maayine rakhti hai ye.
ReplyDeletetbhi kucch nasamjh, aur sanvednheen log aisa krte hain. aur haan hum kaunsa bahut hi pahuche hue hain..... is darr ke peeche ki kahani jaanne ki koi koi hi koshish krta hai ... !! arre so called busy world k rehne wale hain
pr is swaal ko uthaya ...acha hai :) shayad isi se thauda bdlaav aa jaye !!
पूर्णत: सहमत हूँ !
Deleteऐसे ही कुछ प्रयास फिर से करेंगे
रिक्त स्थान सम्वेदनाओं के भरेंगे
आज हैं हमें कल की खबर नही ,
आज को कल के लिये लिख रखेंगे !
ये कल जो है आरोही .. वो तो अवश्य पढता है ..! मैं प्रयास करता हूँ कुछ सार्थक लिख सकूँ !
ह्र्दय तल से आभार !
सादर !
अनुराग
Bahut sadhi hui baat ko aap saamne le aaye hain...ye aaj k date mein insaani fitrat ho chuki hai ki bina jaanche parkhe hm kisi k prati ek soch bana lete hain..bahut sahi bhaw ko aapne chinhit kia hai..sadar naman is abhivyakti ko...!
ReplyDeleteFrm abhilekh
Deleteअभिलेख भाई !
Deleteआपका नाम नही था टिप्पणी पर जान गया था ! ह्र्दय की अनंत गहराईयों से आभार !
सादर .. सस्न्हे भाई
अनुराग
सही कहा भैया....लोगों का क्या हैं.... वो तो कुछ न कुछ कहेंगे ही....!!!
ReplyDeleteराहुल भाई !
Deleteह्र्दय से आभार !
:) अनुराग
पूर्णतः सत्य हम बिना सत्य जाने ही कई अवधारणाएं और मनगढंत कहानियां बना लेते हैं।कभी कभी ये नकारात्मक बातें मन पर दुषप्रभाव छोड जाती हैं।
ReplyDeleteएक अनछुआ पहलू अच्छी कथा बधाई।
प्रियंका जी !
Deleteपूर्णत: सहमत हूँ आप से ... ह्र्दय से आभार !
सादर
अनुराग
jo bahulta me baat failti hai hum use maan-ne lagte hain, bina uske andekhe phlu ko jaane. is kahaani ka paatr to chota baccha tha. jo jhat se maa ki baat se sehmat ho gaya aur uska darr nikal gaya. hum sab to ab bhi kisi baat par apni rai bana lete hain bus ek news dekh k. par wah satya se ekdum pare hoti hai shayad. bahut acchi kahaani hai bhaiya.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अपर्णा !
Delete:)
Nishu bhaiya :)
Deleteक्या कहु अनुराग भाई इस कथा के लिए एक हकीकत को आँखों के सामने प्रस्तुत करा जाने क्यों लोग मिथक बनाकर उसमे जीते हैं और सच्चाई जानने की कोशिश नही करते ,खुद तो भ्रम में रहते औरो के मन म भी भ्रम पैदा करते हैं
ReplyDeleteलाजवाब कथा अनसुलझे प्रश्न के साथ.....
नील जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार भाई
सादर
अनुराग
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ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर
ReplyDeleteतुषार जी !
Deleteआभार भाई !
सादर !
Prejudice is the answer....
ReplyDeleteexpression is good....
Heartily Thanks sir !
Deletereg
Anurag
Bhai Ji, Bahut hi sarthak laghu katha .. ek anchuya ansuna sa prashn jo hamesha hamare sammukh raha, ko bal deti huyi rachna.
ReplyDeleteनीरज भाई,
Deleteह्र्दय तल से आभारी हूँ !
सादर !
बहुत से जीवन का सच है ...........
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी कथा .
ह्रदय तल से आभार !
Deleteसादर
ehsaascreation@gmail.com
@अनुराग त्रिवेदी, जबलपुर, मध्य-प्रदेश
बहुत ही दिल को छूने वाली कहानी...लोगों का क्या है उन्हे तो बस कहानियाँ बनानी आती हैं...इसी तरह का भाव लिए अनुष्टुप में दो पंक्तियाँ लिखी थी मैने...
ReplyDeleteकिसी की बेबसी का तो, मजाक न उड़ाइए|
न आप भी विधाता के, निशाना बन जाइए
ह्रदय तल से आभार !
Deleteसादर
ehsaascreation@gmail.com
@अनुराग त्रिवेदी, जबलपुर, मध्य-प्रदेश
समझना दर्द को दिल के
ReplyDeleteकाम हिम्मत का है 'निर्जन'
लोग तो चेहरे पढ़कर अक्सर
दास्ताँ बना लिया करते हैं ....
ह्रदय तल से आभार !
Deleteसादर
ehsaascreation@gmail.com
@अनुराग त्रिवेदी, जबलपुर, मध्य-प्रदेश
अच्छा था जो थे अक्ल से नादान हम
ReplyDeleteखौफ क्या है , उससे थे अनजान हम
ये डर भी वही है , जिसे हमने ही पाला
वरना भरते रहे सदा ऊँची उड़ान हम ...
डर के चेहरे का चित्रण हम ही करते हैं और उसे अपने अंदर पालते रहते हैं । डर को गर भगा दिया तो जीने का अंदाज ही बदल जायेगा।
बहुत ही खूब भाई!
Deleteह्रदय तल से आभार !
सादर
ehsaascreation@gmail.com
@अनुराग त्रिवेदी, जबलपुर, मध्य-प्रदेश
:)
Deleteसंदर्भित विषय मुक्तक !!
Deleteबहुत ही खूब विवेक भाई !
ह्रदय तल से आभार
संदर्भित विषय मुक्तक !!
Deleteबहुत ही खूब विवेक भाई !
ह्रदय तल से आभार
bahut sundar aur satik baat likhi dada aapne... pardosh ki bhawana se humara samajh hi nahi apitu pura vishwa hi aapas mai lad raha hai... humara man inta malin ho gaya aur aankhe lobh ke pardo se dakh gayi hai.. hum kisi ki aachai nahi dekh pa rahe , kisi ki parsansha nahi kar pa rahe, kisi ko aapna nahi pa rahe..kyon ki humara aham hume kisi ko aapnane nahi de raha.. aaj log dharam ki baat par ladte hai , jaat k naam par ladte hai, social status k naam par difference karte hai... jarurat ko sab ko iss line ko baar baar do harane ki..
ReplyDelete"majhab nahi sikhata aapas mai bair rakhna", aur humare to ramayan hai shri ram ne dharma k bare mai kaha hai " parhit sam dharma nahi duja" ... bahut sundar lekhan hardik subh kamnaye :)
बहुत बहुत आभार भाई गौरव
Deleteह्रदय से साधुवाद अनुरागजी ,
ReplyDelete------------------- आपकी इस रचना ने आपके नाम को सार्थक कर दिया। जितना भी प्रेम करुणा, दया और अनुराग आपके अंदर था। आपने इस कहानी में उसे सजीव कर दिया। हम सभी को भावों कि गंगा मे तैराकार , "स्वयं " के भाव से मुक्त करा दिया। गंभीर सवाल और मार्मिक पीड़ा को उजागर करती आपकी रचना। बधाई आपको. एक सराहनीय सृजन के लिये।
" की आपकी बात की
बात ही कुछ यूँ थी की ,
उसके बाद कोई और बात
इतने करीब से न गुजरी "
------------------------------------ निधि नित्या ----------------
Kiuki insan esahi hai......kisiko bina jane hum kahaniya bonate hai.. bina soche kuch vi naam de dete hai...
ReplyDeleteAgar sab sahi hote..tab thori kahani bante....
Bahut xundar likhoni apunar...bahut bhal lagil podhi... dhanyabad 🙏🏻
THANK YOU VERY MUCH NOMI USTAD 🙏
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