बहुत बहुत बधाई एहसास जी ....बहुत खूब।।सच "आँखों " हमारे जीवन में क्या क्या कर गुजरती हैं ..अच्छा लगा जानकार ..बहुत सुंदर रचना ....आवाज का प्रवाह भी बहुत ही अच्छी तरह से नियंत्रित किया हुआ है ........
"इसीलिए फ़रिश्ते की खुली आँखें ...और तपस्या भंग हो जाती है ...एहसास जी आमंत्रण के लिए शुक्रिया।।आप आमंत्रित करते हैं तो हमारा मान बढ़ जाता है ...हम अपने आप को कुछ समझने लग जाते हैं ..
चन्दर भाई, बहुत बहुत आभार की मेरे आमंत्रण आप साहर्ष स्वीकार कर लते हैं । इस प्रेम और स्नेह के लिये मेरे पास सदा ही शब्द्कोष अपनी आपूर्णता व्यक्त करेगा .. और मैं , हर्दय स्पंदन से ही आपको आभार ! कहता रहूँगा ... बस , आवाज मेरी पहचान लिजियेगा सादर अनुराग एहसास
bahut khoob.. bhai..bahut khoob!!.. aur bahut accha padha hai Taru ji ne.. dilqash aawaaz mein. bahut sundar rachna hai ye anurag bhai...!! :) ---sudeep
सुदीप भाई , बहुत बहुत आभार , इधर अपने वैचारिक टिप्पडी प्रकाशित करने का, क्यूँकि , आज सोशल नेटर्वकिंग साईट में , यदि , कोई परेशानी भी साझा करो, उसे भी लाईक की क्लीक मिल जाती है । और , जिधर तक सृजन की बात है, वो सच्ची प्रेरणा से आती है ।
आभार... हाँ , तरु जी, ने बहुत ही दिलकश आवाज में पढा और जितने बार मैने, आस्वीकृत किया उसने उतने ही अंदाज से पढा .. ये उसकी सृजन के प्रति धनात्मकता सदैव स्मृरणीय रहेगी साथ ही मेरा आशीष और स्नेह उसके उज्जवल भाविष्य की सदैव कामना करता रहा है , और करेगा । : बस , ऐसे ही कुछ रचानायें , आपके स्टूडियों में लेकर आउँगा । पर, निश्चित तौर पे उसमें समय है । आभार .. सादर अनुराग "एहसास"
रचना की इन पंक्तीयों को तरु ने भी बहुत पसंद किया, इन पंक्तीयों पर आ कर ज्यादा ही सम्वेदनशीलता होने के कारण कई बार उसने प्रयास किये । आभार .. आपकी टिप्पणियाँ बहुत ही प्रभावी/ सकारत्मक होती हैं.. मेरी तरु की तरफ से .. बहुत बहुत आभार ! सादर अनुराग एहसास
सूखे मन के बियाबान में जाने कहां से दरिया ओ झरनों को ले आती है ये आँखें ...फ़रिश्ते की खुली आँख तपस्या भंग हो जाती है ...बहुत खूबसूरत रचना और प्रस्तुति ..बधाइयाँ...
आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिये .. और साहर्ष स्वीकार आपकी बधाई इस संकल्प के साथ .. नवीन प्रयास से संयोजित करते रहेंगे भाव को .. आशीष वचनों के लिये हर्दय से आभार .. पुन: आभार सादर अनुराग एहसास
बहुत बहुत बधाई एहसास जी ....बहुत खूब।।सच "आँखों " हमारे जीवन में क्या क्या कर गुजरती हैं ..अच्छा लगा जानकार ..बहुत सुंदर रचना ....आवाज का प्रवाह भी बहुत ही अच्छी तरह से नियंत्रित किया हुआ है ........
ReplyDelete"इसीलिए फ़रिश्ते की खुली आँखें ...और तपस्या भंग हो जाती है ...एहसास जी आमंत्रण के लिए शुक्रिया।।आप आमंत्रित करते हैं तो हमारा मान बढ़ जाता है ...हम अपने आप को कुछ समझने लग जाते हैं ..
चन्दर भाई,
Deleteबहुत बहुत आभार की मेरे आमंत्रण आप साहर्ष स्वीकार कर लते हैं । इस प्रेम और स्नेह के लिये मेरे पास सदा ही शब्द्कोष अपनी आपूर्णता व्यक्त करेगा .. और मैं , हर्दय स्पंदन से ही आपको आभार ! कहता रहूँगा ... बस , आवाज मेरी पहचान लिजियेगा
सादर
अनुराग एहसास
bahut khoob.. bhai..bahut khoob!!.. aur bahut accha padha hai Taru ji ne.. dilqash aawaaz mein. bahut sundar rachna hai ye anurag bhai...!! :)
ReplyDelete---sudeep
सुदीप भाई ,
Deleteबहुत बहुत आभार , इधर अपने वैचारिक टिप्पडी प्रकाशित करने का, क्यूँकि , आज सोशल नेटर्वकिंग साईट में , यदि , कोई परेशानी भी साझा करो, उसे भी लाईक की क्लीक मिल जाती है ।
और , जिधर तक सृजन की बात है, वो सच्ची प्रेरणा से आती है ।
आभार... हाँ , तरु जी, ने बहुत ही दिलकश आवाज में पढा और जितने बार मैने, आस्वीकृत किया उसने उतने ही अंदाज से पढा .. ये उसकी सृजन के प्रति धनात्मकता सदैव स्मृरणीय रहेगी साथ ही मेरा आशीष और स्नेह उसके उज्जवल भाविष्य की सदैव कामना करता रहा है , और करेगा ।
: बस , ऐसे ही कुछ रचानायें , आपके स्टूडियों में लेकर आउँगा ।
पर, निश्चित तौर पे उसमें समय है ।
आभार .. सादर
अनुराग "एहसास"
बहुत सुन्दर!!! बहुत अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteनीरज "नीर" जी,
Deleteबहुत बहुत आभार, खासतौर पर अपनी टिप्पडी प्रस्तुति पर करने के लिये । ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहिये नीरज जी
सादर
अनुराग "एहसास"
sukhe man ke biyabaan me jane kahan se dariya o jharno ko le aati hai..........YE AANKHEIN
ReplyDeletevery literal lines with very soothing voice.......
बहुत बहुत आभार सेवी जी !
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रचना की इन पंक्तीयों को तरु ने भी बहुत पसंद किया, इन पंक्तीयों पर आ कर ज्यादा ही सम्वेदनशीलता होने के कारण कई बार उसने प्रयास किये ।
आभार .. आपकी टिप्पणियाँ बहुत ही प्रभावी/ सकारत्मक होती हैं..
मेरी तरु की तरफ से .. बहुत बहुत आभार !
सादर
अनुराग एहसास
सूखे मन के बियाबान में जाने कहां से दरिया ओ झरनों को ले आती है ये आँखें ...फ़रिश्ते की खुली आँख तपस्या भंग हो जाती है ...बहुत खूबसूरत रचना और प्रस्तुति ..बधाइयाँ...
ReplyDelete:) :) बहुत बहुत आभार प्रिती जी !
Deleteआपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिये .. और साहर्ष स्वीकार आपकी बधाई इस संकल्प के साथ .. नवीन प्रयास से संयोजित करते रहेंगे भाव को .. आशीष वचनों के लिये हर्दय से आभार .. पुन: आभार
सादर
अनुराग एहसास
शानदार प्रस्तुति | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
हार्दिक आभार मित्र, तुषार !
Deleteआवश्य ......... !
सादर
अनुराग त्रिवेदी एहसास
behad khoobsurat bhaiya i always copy these lines when anybody talked about aankhen!!!
ReplyDeleteAwesome hai sir..Aapke kavita aur Taru ji ki padhne ka style..Dono hi lajawab..:)
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