नारी के कोमल मन में कितनी ही बातें दब जाती है
वो नही कह पाती कभी किसी से, बस उसे छुपाती है
विडम्बना है, कि कैसे वो सुख-दुःख का इजहार करे !
अपनी पीड़ा छिपाने को, खुद गठरी बन सो जाती है
शिशु रुप ले लेती है ....जब घुटने छाती से लगते !
बच्चे के पेट को छूते ही सजग हो माँ जाग जाती है
अपनी परेशानी उसके लिये महत्व कभी ना रखती,
परिवार के लिये खुद को भुलाती, खो सी जाती है
जिन पर वारा उसने सब कुछ …वो उसे भूल बैठे
उस वक्त उसकी सम्वेदनायें शिथिल हो जाती हैं
प्राण-हीन जीवन रह जाता और वो सहती रहती !
फिर अनकही वेदना ले, सफेद चादर में सो जाती है
चित्रांकन गूगल से साभार
सच ! सफ़ेद चादर न सिर्फ कफ़न बल्कि उसकी बेरंग ज़िन्दगी का भी सूचक होता है :(
ReplyDeleteस्पर्श जी,
Deleteएक दम सही कहा आपने ... ह्र्दय तल से आभार !
सादर !
बड़ी ही खूबसूरती से नारी के मन में आते जाते भावों का वर्णन करती आपकी ये अभिव्यक्ति ..... कितना भी कुछ भी ओर कैसा भी हो जाए.....
ReplyDeleteफिर अनकही वेदना ले.....सफ़ेद चादर ओढ़ सो जाती .... नतमस्तक :)
आरोही जी ,
Deleteह्र्दय तल से आभार !
नमन !
एक भाव-प्रधान रचना ,बिना छांदस आडम्बर के !
ReplyDeleteदेवदत्त जी ,
Deleteबहुत बहुत आभारी हूँ !
सादर नमन् !
सच लिखा आपने .एक पुरुष ने नारी मन की भावनाए उकेरी अति उत्तम भाव
ReplyDeleteनीलिमा जी ,
Deleteभाव अभिव्यक्ती की सरहना कर प्रोत्सहित करने के लिये! ह्र्दय तल से आभारी हूँ
सादर !
सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति .मंजुल भटनागर
ReplyDeleteदीदी,
Deleteह्र्दय से आभारी हूँ प्रेरक टिप्पणी के लिये !
सादर
नारी मन की वेदना को शब्दों में अभिव्यक्त करने का बहुत सुंदर प्रयास किया है आपने ...सचमुच अपनी सभी पीडाओं को सफेद चादर तक ले जाती है...
ReplyDeleteअनिता जी ,
Deleteह्र्दय तल से आभार व्यक्त करता हूँ !
सादर !
पुरुष होकर स्त्री पर लिखना आपके संवेदनशील ह्रदय का परिचय है जिसका मै स्वागत करती हूँ
ReplyDelete
Deleteह्र्दय तल से आभार व्यक्त करता हूँ
सादर !
आप बहुत संवेदनशील हैं. नारी के अंतर्मन में प्रवेश कर आपने नारी की वेदना को समझा है और उसे उकेरा है. बधाई
ReplyDeleteगीता मेम ,
Deleteह्र्दय तल से आभार !
सादर !
अनुराग
Bhut hi khubsurati se aapne ek naari ki bhawnao asamnjason aur unke jivan ki sachchaiyon ko vyakt kiya hai apko bhut bhut nadhai ho bhaiya....Very nice Composition..:)
ReplyDeleteThank you so much Sona !
Delete:)
Perfect...just the words....
ReplyDeleteHeartily thanks ma'mm !
Deletebahut hi sarthak abhivyakti hai nari jeevan ki
ReplyDeleteह्र्दय तल से आभारी हूँ !
Deleteसादर ..!
कई रंगों की तीव्र या उच्च आवृति के सामंजस्य से श्वेत रंग का अभ्युदय होता है..वैसी ही नारी है...खुद में जीवन के कई रंगों को समेट कर धवल रूप में एकाकार करती..... आपकी अभिव्यक्ति ने इस भाव को और मुखर कर दिया....साधुवाद :)
ReplyDeleteबेहद प्रेरणादायी टिप्पणी के लिये ह्र्दय तल से आभार व्यक्त करता हूँ !
Deleteबहुत बहुत आभार
सादर !
: अनुराग ..
speechless. samajh hi nahi aa raha kya likhe.
ReplyDeleteshishu rup le leti hai wali line sabse jyada acchi lagi. :)
http://madhurgunjan.blogspot.in/2012/06/blog-post_10.html
Deleteनिशू ये पढो ..
anurag ji nari charitra ko chitrit karti sundar rachna .. par paksh ko khubsurati se ubhara hai apne ..badhayi
ReplyDeleteआभार नेह जी ...!
Deleteएक भाव इसे भी साझा करता हूँ कृपा पढियेगा !
http://madhurgunjan.blogspot.in/2012/06/blog-post_10.html
बहुत अच्छा लिखा...नारी के साथ कई अनकही वेदनाएँ जुड़ी रहती हैं...भावपूर्ण रचना|
ReplyDeleteह्र्दय तल से आभारी हूँ ..! मुझे आपकी रचना भी बेहद मर्मसप्र्शी लगी , बिन अनुमति मित्रों से लिंक साझा कर रहा हूँ !
Deleteह्र्दय तल से नमन वन्दन !
Bahut sahi baat hai Anurag bhai...har smvedna ko bayaan nhi kia ja sakta...aapki is koshish k aapko naman...aaj ki taarikh mein bhi stri apni vyatha kah nhi paati..bahut bhawuk ehsaason se piroyi is rachna ko sat sat naman...! - abhilekh
ReplyDeleteअभिलेख भाई,
Deleteह्र्दय तल से आपका आभारी हूँ ! बहुत बहुत आभार प्रेरक टिप्पणी के लिये भाई .. आगे भी प्रयास करता रहूँगा .. स्नेह आशीष बनायें रखियेगा !
सादर !
बहुत भावपूर्ण .. स्त्री चरित्र को बखूबी शब्द दिया है आपने ..
ReplyDeleteनीरज भाई !
Deleteमुझे आपकी टिप्पणी की प्रतिक्षा थी .. बहुत बहुत आभार !
सादर !
सत्य ही है......जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते संघर्ष करती जाती हैं परन्तु..................... शाम ढले गर के काम काज और बजट का हिसाब लगाते हुए उन पलों का सही सही हिसाब कहां लगा पाती है जो उसने अपने लिए जिए........अत्यंत भावप्रवण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसत्य ही है......जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते संघर्ष करती जाती हैं परन्तु..................... शाम ढले गर के काम काज और बजट का हिसाब लगाते हुए उन पलों का सही सही हिसाब कहां लगा पाती है जो उसने अपने लिए जिए........अत्यंत भावप्रवण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteह्र्दय तल से आभार प्रियंका जी !
Deleteसादर !
भाव निःसंदेह बहुत अच्छे हैं....
ReplyDeleteग़ज़ल की दृष्टि से देखने पर हो सकता है कुछ कमियाँ हो...नियम तो हम खुद नहीं जानते हाँ,लय में गाई जा सके उस ग़ज़ल को हम बहर में मानते हैं.... :-)
शुभकामनाएं!!!
अनु
जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteये गज़ल नही है ..पूर्ण्त: छन्दमुक्त भाव अभिव्यक्ती है !
मापनी ( बहर ) की जटिलातों में हार जाता हूँ ... पर ये किया है आद्रणीय मित्र मधु जी ने !
साझा करुंगा लिंक ...
बहुत बहुत खुशी हुई टिप्पणी पढ कर
सादर अनु जी !
जी बहुत ही भावपूर्ण है। …… सच ही तो है कितना कुछ सहती है नारी परन्तु अंततः उसे ही समझोता करना पड़ता है हर चीज
ReplyDeleteसे शायद ही कोई नारी क मन की वेदना को समझ सके…
बहुत बहुत आभार मनदीप जी !
Deleteसादर !
अनुराग आप बहेतर लिख लेते हो--
ReplyDeleteराजू भाई
Deleteह्रदय तल से आभार !
आपकी टिप्पणी पढ़ कर बेहद खुशी हुई भाई
सादर
अनुराग
ज़िंदगी यूँ ही बीत जाती है अक्सर और हम अपनों के दर्द से बेपरवाह भटकते रहते हैं ....जाने वाला दर्द खुद में समेटे अकेला ही चलाए जाता .
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी ........
ह्रदय तल से आभार गुरु जी
Deleteसादर
Bahut hi bhavpurna evam sundar rachna..Hats off 2u..:)
ReplyDeleteह्र्दय तल से आभार देविका जी !
Deleteसादर !
Behad marmsparshi rachna hai bhaiya,naari k sangharshh to ujagar karti,
ReplyDeleteतरु ,
Deleteह्र्दय तल से आभार !
नारी मन की पीड़ा को समझा ....उसके लिए आभार
ReplyDeleteप्रोत्साहन देती आपकी टिप्पणी को सह्र्दय नमन !
Deleteह्र्दय तल से आभार !
Umda chacha............par nari me aa rahe badlav (sakaratmak aur nakaratmak) ko rekhankit nahi kiya ja raha aajkal .........us par vichar karna aaj ki bahut badi sahityik jarurat hai
ReplyDeleteसोमू
Deleteसच कहा तुमने और मैंने अनुभव किया की संचार से जुड़ने के बाद तार की तरंगो की तरह ही बातें उठ कर आईं हैं। अब सहित्यक विधा में लोग लेख,लघु कथाएं, अभिव्यक्ती प्रेषित कर रहे हैं ।
और भी प्रखर होता रहेगा जो पाठक प्रोत्साहन ऐसे ही देते रहेंगे।
सस्नेह नमन दोस्त
behad hi bhawpurna ,umda kavita....aur sahi likha tumne ki ant me jab apne tyag ka sahi pratifal nahin milta to mano bikhar jati hai aurat...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ! आगे भी आपकी प्रोत्साहन टिप्पणी की अभिलाषा है।
Deleteसादर
kya kahun anurag ji nishabd hun ..behtareen rachna ..kam shabdo mei hi sab keh diya aapne .... aurat apne liye kuch karna bhi chahe to use swarthi samjha jaata hai selfish khte hain log use .. rachna ko naman
ReplyDeletessneh
parul
ह्रदय से आभार पारुल जी !
Deleteआपकी भाव अबिव्य्क्ती " चीख ' जितना ही समभाव प्रयास था
हांर्दिक आभार
इसके बावजूद....उसे इस बात का कोई दुःख नहीं ....वह बस दूसरों के दुःख कम करना चाहती है ...और वह भी ख़ुशी ख़ुशी .....एक पुरुष मन से उठते यह भाव ...अच्छे लगे
ReplyDeleteसह्रदय नमन!
ReplyDeleteवाह शब्द ही नहीं है मेरे पास ताकि आपकी अभिव्यक्ति को बयां करूँ । नारी के जीवन का सही व सजीव चित्रण ...
ReplyDeleteनारी है तू महान , तेरी शक्ति गान हम गाते हैं
तेरे बलिदानों के आगे नभ भी झुक जाते हैं ।
बूंद शबनमी नहीं प्यार तेरा जो पल उड़ जाए
प्यार और त्याग जैसे सबब ये सिखलाते हैं ।
विवेक सिंघानिया।
बहुत बहुत आभार विवेक भाई !
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