माणिक लाल जी की अस्वस्थता के बाद जब उनके बेटे, अनमोल ने दुकान में पदार्पण किया तो उनकी दुकान की कायापलट की प्रक्रिया शुरू हो गयी । पुराने ढर्रे की दुकान को अनमोल ने भव्य शो-रुम में तब्दील करने की जैसे मुहीम ही चला दी ! दुकान की हर चीज बदल कर नए ढंग की करने की धुन सवार हो गयी अनमोल पर । किशोर जी, मणिक लाल के पुराने कारीगर थे । हर ग्राहक का खास कहना होता था कि हीरे को तराश कर उनके गहनों को बनाने का काम सिर्फ किशोर जी ही करें ।
किशोर जी दुकान के इस नये कलेवर को देख कर हर्ष महसूस कर रहे थे । युवा जोश के साथ ताल से ताल मिलाने को वो बेताब थे, किंतु अनमोल के मन में तो कुछ और ही चल रहा था | जैसे उसे दुकान की हर पुरानी चीज खटक रही थी, उसी तरह से जल्दी ही कर्मचारियों की भी बारी आ गयी | पुराने सेल्स-मैन हटाकर, उसने सुन्दर और आकर्षक लड़कियों को रख लिया । अपनी बूढ़ी मगर तेज़ और अनुभवी नज़र से जो हीरे और सोने की परख दूर से ही कर लेता था वही कारीगर भाँप गया कि अगला नम्बर उसका है ।
एक रोज किशोर जी को अनमोल ने बुलाया | अनमोल :- "चाचा ! आप क्या देखते हो ? देखो ग्राहक ने वापस भेजा है हार ..!" हार देखते ही किशोर जी पहचान गए थे कि ये तो नये कारीगर के हाथ का काम है पर ग्राहक के सामने वो कुछ न बोले और चुपचाप हार लेकर गए और कुछ देर बाद ही ग्राहक के कहे अनुसार उसे ठीक करके दे दिया । उनकी भलमनसाहत और कार्यकुशलता, अनमोल पर प्रभावहीन ही रही क्योंकि उसके अंतर में तो बदलाव की धुन, डट के बैठ चुकी थी ...कुछ दिनों के बाद वो बहाना तलाशने लगा पर किशोर जी की निपुणता और कर्मठता उसे कोई मौका ना दे रही थी | आखिर जब उससे न रहा गया तो एक दिन बोल ही दिया :- "चाचा मैं सोच रहा हूँ .. कि आप कुछ दिन आराम करो ! .. मेरा मतलब.....!” किशोर जी सुनते ही मुस्कुरा कर बोले :- "जौहरी का कारीगर हूँ .. इतनी समझ तो है कि बिन कहे मतलब समझ जाऊं, सेठ जी ! .. मैं कल से ना आउँगा..पर आज शाम तक काम कर लूँ जिससे जो काम हाथ में लिया, पूरा कर सकूँ !" कहते हुये किशोर जी अपने काम में जतन से लग गए | कुछ ही देर में हाथ से हार निकाल कर उन्होंने दे दिया और चले गए ।
कुछ दिन गुजरे ! पुराने ग्राहकों का मन दुकान के काम से उतरने लगा, वो नये शो रुम में अपनी नज़र इधर-उधर घुमाते और आखिर पूछ ही लेते – ‘किशोर जी भाई नही दिख रहे !’ अनमोल उनकी अस्वस्थता का बहाना बता देता |
गोमती देवी माणिक भाई की दुकान के पुराने ग्राहकों में थीं । किशोर और माणिक को न पा कर वो पास के एक दूसरे शो-रूम पर गईं । उन्होने उधर प्रश्न पूछा :- "किशोर भाई जी किधर हैं जो मणिक के यहाँ काम करते थे ?" उनको काम से निकालने की बात सुन कर गोमती देवी को आश्चर्य और निराशा हुई ।
कुछ हफ़्तों के बाद ....गोमती देवी जब समन्दर किनारे अपनी नातिन के साथ घूमने निकली तो नातिन उनका हाथ छुड़ा कर एक गुब्बारे वाले के पीछे भाग कर गई । गुब्बारे वाले ने बच्ची को दुलराते हुये एक गुब्बारा फुला कर दिया । ज्यूँ ही गोमती देवी उधर पँहुची, तो देख कर चकित होते हुये बोली :- "अरे ! किशोर भाई ! आप .. इधर .. और ये क्या ?” किशोर जी ने सहज भाव से नमस्कार करते हुये मुस्कुरा कर जवाब दिया :- "काम कर रहा हूँ !" गोमती देवी ने पुन: प्रश्नवाचक दृष्टी डाली उनपर, तो उनके मौन प्रश्न का किशोर जी ने जवाब दिया :- "हीरा तराशना ही तो मेरा काम था .. चाहे वो करुँ .. या इधर....!” बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा .....तभी पीछे से एक आवाज आई तो पलट कर देखा और कहने लगे :- "बच्चों की मुस्कान भी खरा सोना है दीदी .. और ये चमकते मोती से दाने रोज देखता हूँ .. अभी भी अपना काम उसी नीयत से करता हूँ.....|” थोड़ी देर तक वो कहते रहे और गोमती देवी बस सुनती रहीं ....फिर वो अचानक बोले :- “अच्छा ग्राहक बुला रहा है .....चलता हूँ !” कहते हुये किशोर जी तो चले गए पर पीछे रह गयी, उनकी अनमोल दर्शन से भरी मूल्यवान बातें ………जो गोमती देवी मन ही मन दोहराती रहीं और उसी रात उनकी डायरी के एक पन्ने पर चंद पंक्तियाँ बन कर उभर आईं –
‘हीरे की बनावट पर अब प्रश्न चिन्ह आया है,
पुराने कारीगर का हुनर, नजर नही आया है !
सेठ के लड़के ने उसे पुराना कह कर हटाया,
अब वो बाजार में गुब्बारे बेच कर हर्षाया है !
पूछा उससे मैने, कि इसमें तुम क्या पाते हो ?
जवाब दिया : नन्ही मुस्कानों ने सब भुलाया है ।
बच्चे का सिर सहलाते फिर कहने लगा वो !
हीरे से ज्यादा चमक को मैने अब अपनाया है ।
देता गुब्बारा कुछ पैसे में ही, हवा भरके इनको,
मुझे मेरी छाती में साँस का पता लग पाया है ।
क्यूँ पूछते हो आप कि क्या मिलता है मुझे ?
हीरा तराशने में कब सच्चा सुख मैंने पाया है !
नही पूजता मैं इसका-उसका खुदा कभी भी !
देखो ! वो पास आता, मुझे खुदा नजर आया है ।
और भी हैं बातें फुर्सत में आप कर लेना कभी !
मेरा वक्त हो चला, बच्चों ने मुझे बुलाया है ।
गुब्बारे ले लो …! कहते हुए बढ़ गया वो आगे,
जोश से जिन्दगी को जीता इंसान मैंने पाया है !'
: अनुराग त्रिवेदी - एहसास
किशोर जी दुकान के इस नये कलेवर को देख कर हर्ष महसूस कर रहे थे । युवा जोश के साथ ताल से ताल मिलाने को वो बेताब थे, किंतु अनमोल के मन में तो कुछ और ही चल रहा था | जैसे उसे दुकान की हर पुरानी चीज खटक रही थी, उसी तरह से जल्दी ही कर्मचारियों की भी बारी आ गयी | पुराने सेल्स-मैन हटाकर, उसने सुन्दर और आकर्षक लड़कियों को रख लिया । अपनी बूढ़ी मगर तेज़ और अनुभवी नज़र से जो हीरे और सोने की परख दूर से ही कर लेता था वही कारीगर भाँप गया कि अगला नम्बर उसका है ।
एक रोज किशोर जी को अनमोल ने बुलाया | अनमोल :- "चाचा ! आप क्या देखते हो ? देखो ग्राहक ने वापस भेजा है हार ..!" हार देखते ही किशोर जी पहचान गए थे कि ये तो नये कारीगर के हाथ का काम है पर ग्राहक के सामने वो कुछ न बोले और चुपचाप हार लेकर गए और कुछ देर बाद ही ग्राहक के कहे अनुसार उसे ठीक करके दे दिया । उनकी भलमनसाहत और कार्यकुशलता, अनमोल पर प्रभावहीन ही रही क्योंकि उसके अंतर में तो बदलाव की धुन, डट के बैठ चुकी थी ...कुछ दिनों के बाद वो बहाना तलाशने लगा पर किशोर जी की निपुणता और कर्मठता उसे कोई मौका ना दे रही थी | आखिर जब उससे न रहा गया तो एक दिन बोल ही दिया :- "चाचा मैं सोच रहा हूँ .. कि आप कुछ दिन आराम करो ! .. मेरा मतलब.....!” किशोर जी सुनते ही मुस्कुरा कर बोले :- "जौहरी का कारीगर हूँ .. इतनी समझ तो है कि बिन कहे मतलब समझ जाऊं, सेठ जी ! .. मैं कल से ना आउँगा..पर आज शाम तक काम कर लूँ जिससे जो काम हाथ में लिया, पूरा कर सकूँ !" कहते हुये किशोर जी अपने काम में जतन से लग गए | कुछ ही देर में हाथ से हार निकाल कर उन्होंने दे दिया और चले गए ।
कुछ दिन गुजरे ! पुराने ग्राहकों का मन दुकान के काम से उतरने लगा, वो नये शो रुम में अपनी नज़र इधर-उधर घुमाते और आखिर पूछ ही लेते – ‘किशोर जी भाई नही दिख रहे !’ अनमोल उनकी अस्वस्थता का बहाना बता देता |
गोमती देवी माणिक भाई की दुकान के पुराने ग्राहकों में थीं । किशोर और माणिक को न पा कर वो पास के एक दूसरे शो-रूम पर गईं । उन्होने उधर प्रश्न पूछा :- "किशोर भाई जी किधर हैं जो मणिक के यहाँ काम करते थे ?" उनको काम से निकालने की बात सुन कर गोमती देवी को आश्चर्य और निराशा हुई ।
कुछ हफ़्तों के बाद ....गोमती देवी जब समन्दर किनारे अपनी नातिन के साथ घूमने निकली तो नातिन उनका हाथ छुड़ा कर एक गुब्बारे वाले के पीछे भाग कर गई । गुब्बारे वाले ने बच्ची को दुलराते हुये एक गुब्बारा फुला कर दिया । ज्यूँ ही गोमती देवी उधर पँहुची, तो देख कर चकित होते हुये बोली :- "अरे ! किशोर भाई ! आप .. इधर .. और ये क्या ?” किशोर जी ने सहज भाव से नमस्कार करते हुये मुस्कुरा कर जवाब दिया :- "काम कर रहा हूँ !" गोमती देवी ने पुन: प्रश्नवाचक दृष्टी डाली उनपर, तो उनके मौन प्रश्न का किशोर जी ने जवाब दिया :- "हीरा तराशना ही तो मेरा काम था .. चाहे वो करुँ .. या इधर....!” बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा .....तभी पीछे से एक आवाज आई तो पलट कर देखा और कहने लगे :- "बच्चों की मुस्कान भी खरा सोना है दीदी .. और ये चमकते मोती से दाने रोज देखता हूँ .. अभी भी अपना काम उसी नीयत से करता हूँ.....|” थोड़ी देर तक वो कहते रहे और गोमती देवी बस सुनती रहीं ....फिर वो अचानक बोले :- “अच्छा ग्राहक बुला रहा है .....चलता हूँ !” कहते हुये किशोर जी तो चले गए पर पीछे रह गयी, उनकी अनमोल दर्शन से भरी मूल्यवान बातें ………जो गोमती देवी मन ही मन दोहराती रहीं और उसी रात उनकी डायरी के एक पन्ने पर चंद पंक्तियाँ बन कर उभर आईं –
‘हीरे की बनावट पर अब प्रश्न चिन्ह आया है,
पुराने कारीगर का हुनर, नजर नही आया है !
सेठ के लड़के ने उसे पुराना कह कर हटाया,
अब वो बाजार में गुब्बारे बेच कर हर्षाया है !
पूछा उससे मैने, कि इसमें तुम क्या पाते हो ?
जवाब दिया : नन्ही मुस्कानों ने सब भुलाया है ।
बच्चे का सिर सहलाते फिर कहने लगा वो !
हीरे से ज्यादा चमक को मैने अब अपनाया है ।
देता गुब्बारा कुछ पैसे में ही, हवा भरके इनको,
मुझे मेरी छाती में साँस का पता लग पाया है ।
क्यूँ पूछते हो आप कि क्या मिलता है मुझे ?
हीरा तराशने में कब सच्चा सुख मैंने पाया है !
नही पूजता मैं इसका-उसका खुदा कभी भी !
देखो ! वो पास आता, मुझे खुदा नजर आया है ।
और भी हैं बातें फुर्सत में आप कर लेना कभी !
मेरा वक्त हो चला, बच्चों ने मुझे बुलाया है ।
गुब्बारे ले लो …! कहते हुए बढ़ गया वो आगे,
जोश से जिन्दगी को जीता इंसान मैंने पाया है !'
: अनुराग त्रिवेदी - एहसास
सन्ततियों को जीवन के मूल्यों का महत्व समझाना और उन्हें संस्कारित बनाना हीरे तराशने से ज्यादा दुरूह कार्य है भैया...इसक हानी की संक्षिप्तता में छुपे इस सारतत्व की वृहदता ने मुझे बहुत प्रभावित किया भैया.....शुभकामनाएं..
ReplyDeleteसार्थकता सिद्ध हो गई ! अत्यंत प्रभावी टिप्पणी ...बहूत बहुत आभार !
Deletebahut Umdaaa Janaaab ...............aajkal ke badalte halaat ki saaf tasweer apne apne alfaaz me utaar di hai ........... nai peedi sab kuch 21vi sadi ke hisaab se karna chahti hai aur iske liye wo apne nafa nuqsaan ki parwaah bhi nahi karte hai ........magar old is gold wali kahawat unko yaad rakhni chahiye
ReplyDeleteभाई आयूब बहुत बहुत आभार !
Deleteपुराने लोग बड़े जल्दी रिपेरिंग हाउस में मिलते क्योंकि नए जमाने के लोग अब अनुभव कहाँ पूछते। वे तो तड़क-भड़क में विश्वास करते। सुंदर। भावपूर्ण रचना भैया।।
ReplyDeleteह्रदय से आभार राहुल
Deleteबदलते परिवेश में बदलती मानसिकता की अनुपम कथा...साथ ही पुराने अनुभवी लोगों की अनकही व्यथा !!
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteसाहेब...बहुत ही सार्थक लेखन । कहानी का अंत काफी सकारात्मक है । ऐसा सर्वत्र हो तो आहा । कहानी के दोनों अंक काफी सुंदर हैं ।
ReplyDeleteकिशोर काफी जीवंत जीवट दीख पड़ा है ।
अंशु जी और बिस्मिल जी की बात से मैं सहमत हूँ कि नई पीढ़ी को संस्कारित होना परम आवश्यक है ।
कलम में हरि जी की खुशबू का आभास सा हुआ मुझे । सादर नमन ।
गदगद हूँ भाई टिप्पणी पढ़ कर :)
Deleteबहूत बहोत आभार
LAAJAWAAB...
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा कर रहा था सर ।
Deleteपूछा उससे मैने, कि इसमें तुम क्या पाते हो ?
जवाब दिया : नन्ही मुस्कानों ने सब भुलाया है ।
बच्चे का सिर सहलाते फिर कहने लगा वो !
हीरे से ज्यादा चमक को मैने अब अपनाया है ।
देता गुब्बारा कुछ पैसे में ही, हवा भरके इनको,
मुझे मेरी छाती में साँस का पता लग पाया है ।
क्यूँ पूछते हो आप कि क्या मिलता है मुझे ?
हीरा तराशने में कब सच्चा सुख
मर्मस्पर्शी लघु कथा.....सत्य ही है आधुनिक समाज में वर्तमान युवा पीढी बाह्य आडम्बर में अधिक विश्वास करती है परन्तु जीवन के मूल्यों को समझने की क्षमता ,पारखी दृष्टि एवं अनुभव की बात करें तो हम कहीं से भी अपने अग्रजों के समकक्ष नहीं ठहरते। कथा के पात्र की कही बात.....हीरा तराशना मेरा काम था वही कर रहा हूं...कहीं से इसे सत्यापित करता है।
ReplyDeleteहमेशा की तरह...अच्छी रचना हेतु बधाई।
बहुत बहुत आभार !
Deleteएक और बेहतरीन कृति.... सत्य कहा आपने... नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के अनुभवों का लाभ लेने कि बजाय उन्हें सिरे से नकार देती है जो कि पुरानी पीढ़ी की पूरी ज़िन्दगी का निचोड़ होता है...
ReplyDeleteये भी सत्य है ...कि हुनरमंद और सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के लिए प्रत्येक काम संतुष्टिदायक होता है जैसा कि आपने इस रचना के माध्यम से बताया है....
इस सशक्त एवं भावुक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको...
हार्दिक आभार !
Deleteजो सार कहानी में पायी वो सीख बहुत काम आएगी मुझे । वो पंक्तियाँ इस रचना का मर्म हैं । बेहद संवेदना शील हैं ।
ReplyDeleteकाम लगन से कर तू , छोड अपनी निशानियाँ
मिलती रहेगी जग से, हर कदम पे परेशानियाँ
हिम्मत न हार तू , मिलेंगे तुझे नित नए राह
जीवन का सार मिलेगा करेगा रब मेहरबानियाँ ...
विवेक सिंघानिया
ह्रदय तल आभार भाई
Deleteदिल को अन्दर तक छू गयी आपकी कथा। यह कथा में सत्यता इसलिए नज़र आयी क्यूँकी मेरे एक मित्र के बड़े भाई जिनका कपड़े का दूकान था , कुछ ऐसा ही किया था लेकिन जब अनुभव को बाहर कर उन्होंने नुकसान का स्वाद चखा तो समझ आ गयी। कविता अच्छी है लेकिन कथा ज़्यादा असरदार लगी। बेहतरीन अभिव्यक्ति को सादर नमन और आपको ठेंगा।
ReplyDelete:)
Deleteसुन्दर प्रतिक्रिया
आपका ठेंगा पा के खुशी मुझे हो रही है
उम्मीद ही उम्मीद ये जेहन में बो रही है
Kyun puchte ho aap ki kya milta hai mujhe. ............gazab gazab gazab bhawna. ..........aadmi ke manahstithi ki yatarth abhivyakti
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण कथा के मर्म को टिप्पणी में दर्शाया । बहुत ही खूब !
Deleteसच है अनुराग जी पत्थर तराशना फिर भी आसान है.कठिन है इन्सान गड़ना.बच्चे तो इस दुनियां मेंखुदा का ही रूप है. और उनके अन्दर का खुदा ज़िन्दा रहे.इस कोशिश को भी करने वालों का हौसला न टूटे कम से कम इतना तो हम कर ही सकते है उनका साथ देकर.फिर चाहे कलम के ज़रिये या लोगों की आत्मा मथ कर.
ReplyDeleteआप ये कम बख़ूबी कर रहे है. .............आप को पूरी इंसानियत की तरफ से सलाम.
हार्दिक नमन स्वीकारें सुनंदा जी
Deleteसच है अनुराग जी पत्थर तराशना फिर भी आसान है.कठिन है इन्सान गड़ना.बच्चे तो इस दुनियां मेंखुदा का ही रूप है. और उनके अन्दर का खुदा ज़िन्दा रहे.इस कोशिश को भी करने वालों का हौसला न टूटे कम से कम इतना तो हम कर ही सकते है उनका साथ देकर.फिर चाहे कलम के ज़रिये या लोगों की आत्मा मथ कर.
ReplyDeleteआप ये कम बख़ूबी कर रहे है. .............आप को पूरी इंसानियत की तरफ से सलाम.
सच है अनुराग जी पत्थर तराशना फिर भी आसान है.कठिन है इन्सान गड़ना.बच्चे तो इस दुनियां मेंखुदा का ही रूप है. और उनके अन्दर का खुदा ज़िन्दा रहे.इस कोशिश को भी करने वालों का हौसला न टूटे कम से कम इतना तो हम कर ही सकते है उनका साथ देकर.फिर चाहे कलम के ज़रिये या लोगों की आत्मा मथ कर.
ReplyDeleteआप ये कम बख़ूबी कर रहे है. .............आप को पूरी इंसानियत की तरफ से सलाम.
Atyant hi bhaavpurna rachna..Wo log jo naye adambaro ko apnaane k daud me apne adaarsho ko bhool jate hai unhe chahiye ki insaan ki yogyata ko yathochit samman de..
ReplyDeleteMujhe meri chhati me saans ka pata lag paya hai,
Kyu puchte ho aap ki kya milta hai mujhe ?
Bahut khoob..
Yuvapeedhi ka hi hissa hoon..bus yehi kehna chahungi ki..
Mere Ishwar Mere Daata ye kavita maangti tujhse,
Yuva Peedhi sambhal kar k Vivekanand ho jaaye..
यदि आनदं के मार्ग पर भी विवेक जगा पाए
Deleteहर युवा नरेंद्र बन के विवेकानन्द कहला पाए
अपने से हट कर थोडा ही सही न ज्यादा हो
जो वह दूजे के मर्म को कभी भाँप भी पाए हर युवा नरेंद्र बन के विवेकानन्द कहला पाए
नरेन्द्र : जो इन्द्रियों का राजा हो
अत्यंत सारगर्भित आपकी प्रोत्साहन टिप्पणी को सादर नमन !
चर्चा के अंश प्रकाशित करें भाई
ReplyDeleteअभिलेख जी और आप सभी साहित्य मित्रों को कोटि-कोटि नमन ....जो अत्यंत ही गुणी भाव-सृजकों के समूह पटल पर कथा को स्थान दिया...
ReplyDeleteह्रदय तल से आभार !!!
बढ़िया लेखन व कथा अनुराग भाई , धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
हार्दिक आभार भाई जी !
Deleteदो सीख बहुत स्पष्ट हैं
ReplyDeleteएक तो कोई काम बड़ा या छोटा नहीं दूसरा इंसान और हुनर की पहचान जिसको नहीं होती वो दोनों से हाथ धो बैठता है
बहुत सुंदर और सार्थक कहान …
ह्रदय तल से आभार ! नमन ..!
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक कहानी है.....
ReplyDeleteबहुत आम सी बात है...हीरे की परख सबको नहीं होती.....
मन से संतोषी होना सबसे बड़ा सुख !!
ढेरों शुभकामनाएं आपको...सृजन जारी रहे !!
अनु
हार्दिक आभार !!! :)
Deleteसुन्दर कहानी एवं सुन्दर कविता ...
ReplyDeleteह्रदय से आभार भाई
Deletekahani kahi bhi apni aatma se bhatki nahi......
ReplyDeletejo sandesh aap dena chahte hai wo seedhe dil tak pahuchta hai....
kahani ka achcha pahlu ye laga ki aapne kahani ko mukhya kirdar se dur bhatakne nahi diya....agar aap kishore bhai ke jane ke bad anmol ki dukan ke vishay me kahani me kuch kahte to shayad kahani apna marm kho deti...
बहुत खुशी हो रही स्मृती पटल पर टिप्पणी पा कर भाई !
Deleteह्रदय तल से आभार !
Kahani aur kavita donon par aapka adhikar hai aur ek hi kriti mein aap donon sundarata se pesh karte hain. badhai
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteअनुराग क्या कहूँ .....बहोत कुछ घटित होता है जीवन में ...कुछ सुख देता है ...कुछ ग़मगीन कर देता है ....तुम्हारी रचना भी कुछ ऐसी ही लगी ......और उसकी सच्चाई ....गहरे उतर गयी...
ReplyDeleteह्रदय तल आभार !
Deleteऐसे ही आशीष स्नेह देते रहियेगा !
सादर नमन
काम करने वाले की भावना महत्वपूर्ण होती है .काम छोटा या बड़ा नहीं होता ...काश अनमोल समझता इस बात को.....और एक बात लगी की किशोर जी के रूप में कर्मठ व्यक्तित्व के दर्शन तो हुए मगर सकरात्मकता तब ज्यादा उद्देश्य पूर्ण लगती जब अनमोल के बच्चे ही गुब्बारा लेकर खुश होते और अनमोल को गलती का एहसास होता
ReplyDeleteअच्छी कहानी मानवीय रिश्तों को लेकर .....
आपका सुझाव सचमुच अच्छा लगा।
Deleteह्रदय तल से आभार ।
सादर
Bahut khoob Anurag bhai. Comment mein deri ke liye shama chahunga. Bahut hee sundar kahani. Badhai.
ReplyDeleteबहुत आभार भाई !
Deleteक्या बात है अनुराग जी
ReplyDeleteकुछ अलग पर दिल को छु जाने वाल किस्सा
Thx
हार्दिक आभार भाई !
Deleteबच्चों को अच्छे संसकार देना भी हीरा तराशने जैसा ही काम है।हाथों का हुनर तो दिखता ही हैं चाहे वह हीरा हो बच्चा हो या कुम्हार के बरतन जरूरत है हाथों का महत्व समझनने की। बढिया कहानी
ReplyDelete-uttam pramanik DADA
ह्रदय तल से आभार दादा !
Deleteनमन !
आदरणीय अनुराग भाई जी बहुत ही मार्मिक एवं संवेदन शील कहानी लिखी है आपने कुछ क्षण के लिए कई कई विचार मन में उभरे आपने एक कहानी के माध्यम से वर्तमान परिस्थिति में होने वाले कई कई बदलावों को बिना कहे ही कह दिया इस हेतु आपको ढेरों बधाइयाँ और उस पर किशोरी जी का मनोबल बहुत कुछ सिखा रहा है, बहुत ही सुन्दर संदेशपरक कहानी लिखी है आपने आपको बहुत बहुत बधाई मित्रवर.
ReplyDeleteह्रदय से आभार प्रिय अरुण भाई !
Deleteमैने सुना है कि पुराने कलाकार अपने अभिनय को सजीव बनाने के लिए गरीब बस्ती या इसी तरह के किसी और जगह जो भी पट्कथा की आवश्यकता हो, में जा कर रहते थे ताकि उनकी जीवन शैली को जान सकें। अनुराग भाई आपकी जितनी कहानियाँ मैनें पढी हैं सब की सब दिमाग में हमला बोलने वाली रही है, आप किरदार में घुसकर उसकी बात अपनी कलम से कह देते हैं। हीरे तराशने की बात को इतने गहराई तक जाकर सोचना सिर्फ आप जैसा रचनाकर सोच सकता है। बहुत सार्थक कथा प्रस्तुत की है आपने आपको बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई।
ReplyDeleteसह्रदय नमन भाई ! आप लोगों स्नेहिल टिप्पणी प्रेरणा देती हैं !
Deleteसादर नमन !
bahut kam shabdon me aapne har wpo bat kah di jo lekhak kahna chahta tha aur pathak samajhna chahta tha
Delete- first the center character not only represents him as a strong personality but a balanced, meticulous person who knows what to take and what to ignore from life.... bahut suljha kirdaar hai aapka.... optimist, philosophical as well as pleasing...... meethi mishri sa swaad aaya kirdaar ko empathize karne me....
again short yet very balanced n this time very positive....
सारा कुछ आप लोगों की टिप्पणी का ये चमत्कार है। ऐसे ही स्नेह आशीष देते रहियेगा
Deleteसादर नमन सविता जी
kahani atyant saarthak aur saamajik pridrstya ke hisaab se safal chitran karti hai...purane logo ki kaam k prati lagan aur jijivisha tatha aaj ki yuva ki chanchalta evam utawalepan wali manostithi ka adbhut chitran ban pada hai...ant me kavitaa ki pankitiya saar samete hue kahani ke uddeshya ko saarthak aur sundar ta pradaan karti hui...
ReplyDelete:)
Deleteबहुत बहुत आभार !
:)
bahut khub....nice
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deletebahut dino baad kuchh aisa padha jise padh kar man suddh ho gaya.... saumya sarthak rachna... badhayi!
ReplyDeleteनमन !
Deleteह्रदय से आभार !
एक बेहतरीन इंसान के शब्द ऐसे ही मुखर होते हैं, .......
ReplyDeleteसंदेश देती रचना............. बधाई प्रिय !!
सच कहा भाई आपने
Deleteकिशोर भाई से पात्र ही समाज को नेकी पाठ देते हैं ।
ह्रदय से आभार !
मेरी टिप्पणी के दो भाग हैं, अनुराग भाई -
ReplyDelete१.) लेखन सुन्दर है ,भाव भी सार्थक हैं और एक सधे हुए मोड़ पर लाकर संपूर्ण किया गया लेखन है |भाव सृजन सर्वाधिक प्रभावी बिंदु रहा आपके इस लेखन का |
२.) कविता वाला अंक भी अच्छा लगा पर कहीं कहीं पर तुक बैठाने का प्रयास लक्षित हुआ जो उसके भाव पक्ष को थोडा डिगाता सा है | लेखन आपकी शैली के अनुरूप ही सच्चा है ,पर किशोर की तरह एक बार फिर से इसे एक नज़र देखिएगा ज़रूर | हर लिखने वाला भी हीरे का कारीगर है | भाव तराशना ,हीरे तराशने से दुरूह काम है ,और हम सबको वही करना है |
सच्चे लेखन के लिए बधाईयाँ ,मेरे हीरे के कारीगर |
गदगद हूँ निखिल ! जियो मेरे शेर ....
Deleteफ़ोन करता यदि रात ज्यादा न होती।
:)
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनुराग जी। बधाई...
ReplyDeleteह्रदय तल से आभार रत्ना जी
ReplyDeleteSpeechless....bahut he badhiya hai .....specially gubbare ke under ke hawa ko jo aap ne sanso se jo compare keya hai loved it...
ReplyDeleteबहुत खुशी हुई टीप्पणी पढ़ कर ...बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ब्लॉग पर आकर ..
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें
अभिनन्दन !
Deleteह्रदय से आभार !
bahut hi badhiya laghu katha aur kavita....
ReplyDeleteहार्दिक आभआर !!
Deletebahut prabhavi kahani bahut sundar tareeke se aapne baat samjha di kai tarah ki baatein sikha rahi hai aapki ye kahani kavita .. heere ko tarashne mei wo sukh nahi mila jo bachho ko gubbaare bech kar mila .. sachmuch sukh insaan ke bheetar hai baahr kahin nahi .. jis baat jis kaam se use santushti hoti hai wo usi mei sachha sukh dhund leta hai .. aisi prernadaayi rachna ke liye aapko dhero badhai :-)
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteपुरानी चीज़ों का पुराने लोगों का हमें एहसास होना चाहिए
ReplyDeleteउनकी क़द्र होनी चाहिए। आज हम जो है हमारा जो वजूद है
पुराने लोगों की उसमे एक खास भूमिका है।
Bahut Achhi Kahaani Aur Too Good Poetry :) :)
और आपकी कहानी संजू के गणपति भी बहुत पसंद आई मुझे
मौक़ा मिलेगा फिल्म बनाऊंगा उस पर :)
बहुत बहुत आभार भाई !
Deleteईश्वर ने चाहा तो ऐसा अवश्य होगा भाई !
पुनः आभार !
बहुत अच्छी कहानी है ......किशोर जी सच्चे जौहरी थे .......खुद की ज़िंदगी भी उन्होंने तराश राखी थी ......जिसके हर कोने से मन की खुशी प्रगट हो रही थी .......जीवन के अनुभवों का अपना मूल्य होता है ///////और अभागे होते हैं वो जो इनकी कद्र नहीं करते ...... इस कहानी के लिए आपको बधाई :)
ReplyDeleteह्रदय तल से आभार !!
DeleteVery touchy and sentimental story anurag sir.
ReplyDeleteIt beautifully depicts the ongoing generation gap .
People forget old things, old people, even there parents and send them to old age home just because they have become old and useless to them. We must always try to love, respect them because what we can learn from there experience, it cannot be learnt from anywhere else.
Make new friends,
Make new friends,
But keep the old,
One is silver and the other is gold.
कथा और कथाकार वही सफल माने जाते हैं जो घटनाओं और पात्रों की परिस्थीति से कोई सन्देश संप्रेषित कर सकें... ऐसे ही मणिकलाल जी का उबरना अत्यंत प्रेरक है.. बदलाव में अनमोल बढना समायिक .. Very good ..!
ReplyDelete