हर मौसम की अपनी महत्ता होने के साथ-साथ मार भी होती है, जो सबको बर्दाश्त करनी होती है .........विशेषकर
बुजुर्गों को । शीत ऋतु में खिली, नर्म सी धूप की गर्म
सेंक का लालच ले, हर जीव धूप को तकता
है और अवसर मिलते ही उसका भरपूर आनन्द लेता है । वहीं बुज़ुर्ग के लिये शीत ऋतु
उसकी पसलियों से लेकर शरीर के हर अंग में दर्द भर देती है और उसके लिए धूप, महज आनंददायिनी ना होकर औषधि का काम भी करती है
। ऐसे ही एक घने बसे मोहल्ले में, धूप ..............
सुबह से थोड़ा-थोड़ा सरकती है और दोपहर के बाद, सड़क के दूसरे कोने पर जा ठहरती है । रोज एक बूढी अम्मा जो
कि, सड़क के इस पार रहती है, लगातार धूप का पीछा करने के जतन में सड़क के उस
पार जाने का भी प्रयास करती । आते-जाते को ताकती ....कि कोई रुक कर उसे उस पार तक
पँहुचा दे, किंतु अपनी व्यस्तता
में सब भागे चले जाते ।
एक दिन ऐसे ही
.........वो कदम आगे बढ़ाती और फिर पीछे कर लेती । तभी स्कूल से घर के लिये जाती, एक बच्ची उस बूढ़ी अम्मा को देख रुक जाती है । पहले
तो समझने की कोशिश करती रही ....कि वो चाहती क्या है ? आगे बढ़ के पीछे कदम क्यूँ ले लेती है ? ऐसा सोच कर पास आई, तब उसने देखा कि आते-जाते रिक्शे और गाड़ियों के
चलते वो आगे नही बढ पा रही है । वो पास जाती है और बूढ़ी अम्मा का हाथ थाम लेती है
। बूढ़ी अम्मा उसे देख कर मुस्कुराती है और उसके माथे पर हाथ फेर पूछती है :-
"क्या नाम है तुम्हारा ?
बच्ची :- "सुधा..!"
मासूम सी मीठी आवाज़ सुन अम्मा मुस्करा के पूछती है :- “किस कक्षा में पढती हो ?" जवाब में वो बोलती
है :- "पांचवीं कक्षा में ।" इतना कह, वो अम्मा को उस पार छोड़ अपने घर को निकल जाती है ।
फिर यही सिलसिला
दोनों के बीच चलता रहा, दिनों-दिन तक । दूर
से आती सुधा, अम्मा की देहरी पे
ताकती कि अम्मा बैठी है क्या ? और उधर से अम्मा भी
निहारती कि सुधा आती होगी । छुट्टियों के दिन भी सुधा बिन नागा किये अपनी सहेलियों
संग आती और दादी को दूसरे कोने में छोड़ थोड़ी देर उनसे बतियाती और सहेलियों के संग
वापस चली जाती ।
दो अनजानों में अजीब
सा एक आस का रिश्ता सा बन गया था । दोनों ही एक दूजे को दूर से ही देख, मुस्कुराती और फिर बहुत देर तक बतियातीं । बाकी
लोग अपने ही कामों की दौड़-भाग में व्यस्त ..........एक वही बच्ची उस बूढी के मर्म
को पढ़ पाती । कभी उनसे कहानियाँ सुनती ...और कभी सुनाती ।
ऐसे ही दो महीने बीत गए । एक दिन रोज़ की तरह, सुधा दूर से देखती आ रही थी अम्मा को, लेकिन वो उसे दिखाई नहीं दे रही थी । उनके खंडहर
से मकान के बाहर खड़ी देर तक सोचती रही ..........जाउँ कि नही ? हिम्मत ही नही जुटा पाई, अन्दर जाने की । दो दिन बीत गये, अम्मा उसे नहीं दिखी । दिन-दिन भर चिंता में
रहती । फिर आखिरकार मन बना कर उस मकान में घुस ही गयी । सहमे-सहमे से हलके कदम आगे
रखती जाती और ...... अम्मा ......अम्मा ! पुकारती जाती लेकिन बहुत अन्दर जाने तक
उसे कोई नही दिखा । फिर घर के आखिरी तहखाने नुमा, एक छोटे से कमरे से उसे आवाजें सुनाई दी .......कराहने की ।
वो डरी-सहमी, आगे-पीछे देखती, उधर पंहुची ...तो अन्दर कमरे में जर्जर सी
चारपाई में पड़ी बूढी अम्मा को कराहते देख, वो बेचैन हो उठी :- "अम्मा ! क्या हुआ ?"
बूढी अम्मा उसे उधर
देख, दर्द में भी मुस्कुरा के बोल पड़ी :- "कुछ
नही रे.. बूढ़ा शरीर है.. बस वही.. !"
सुधा की भँवे तन गयी और बोली :-
"सच बोलो अम्मा .....! का हुआ ?"
बूढ़ी अम्मा उसके हाथ पे हाथ रख बोली :- "पड़ोस के बच्चे
खेल रहे थे, मुझ लाचार के भाग
फूटे ..... जो सामने आ गई, बस धक्का लगा और
कूल्हे में अंदरूनी चोट आ गई । उठना तो दूर, हिल भी नही सकती ।"
सुधा ने कमरे के अन्दर नज़र दौड़ाई
तो उधर गिनती के कुछ सामान .........जो फैले हुए पड़े थे । उसने उनकी जरुरत के
सामान, उनके पास रखे और पूछा :- "अम्मा .....! क्या
तुमाई देख्र-रेख करवे के लाने कोई नही है का ?"
अम्मा उसके चेहरे पर चिंता के भाव देख, फिर मुस्कुराई और प्यार से उसके माथे पर हाथ
फेरती हुई बोली :- "पगली ! तू है ना ?"
सुधा कमउम्र में भी समझ रखती थी, चाहती थी कि जिस विषय पर सवाल पूछा जवाब वही
मिले ........उसने बनावटी गुस्से में फिर पूछा :- "मैं जो पूछ रही हूँ
......वो बताओ ?"
अम्मा ने दीवाल की
तरफ सिर घुमा कर इशारा किया, उधर टंगी दो
तस्वीरों की ओर ........।
सुधा देखने लगी, दोनो तस्वीरें .....दो नौजवानों की ...दोनों फौज की वर्दी
पहने हुये ।
अम्मा बोली :- "एक को बीमारी ने चपेट में ले लिया ...... दूसरे
को सीमा की रक्षा करते समय शहादत मिली ।"
सुधा :- "शहादत .....! मतलब ?"
अम्मा दर्द की लहर
को चेहरे पे नही आने दे रही थी......पर अब जब सुधा ने उनके जज़्बाती दर्द को अनजाने
में छेड़ दिया तो उसके झुर्रीदार चेहरे में दर्द की लकीरें सी आ गईं पर रुंधी सी
आवाज़ के कम्पन पर भरसक काबू करते हुए, अम्मा ने सहजता से बताया :- "बच्ची..! शहादत उसे कहते
हैं .. जब बच्चे अपनी मातृ-भूमि के लिये हँसते-हँसते जान दे देते हैं ।"
सुधा
को बात कितनी समझ आई, वो उसका भोला चेहरा
बता रहा था पर एक ठंडी आह सी भरती हुई आवाज में उसने कहा :- "अच्छा !"
अम्मा की सारी
जरुरत की चीजें उनके पास रख वो घर चली गई
...........घर जा कर कई बार अम्मा के बारे में बताने का उसका मन हुआ
.....पर बोली नही । जाने क्या था .........जो उसे रोक लेता था ? अपनी मासूम सी समझदारी में शायद उसके मन में ये
बात थी कि बता देने से, ऐसा ना हो कि, जो मदद अभी कर पा रही है वो अम्मा की, फिर कहीं वो भी ना कर पाये ! अम्मा के बारे में
ही सोचती और मन ही मन एक सवाल उसे कुरेदता कि शहादत हुई भी तो उसी अम्मा के यहाँ
क्यूँ ? वो इतनी बीमार हैं और उनका कोई भी नहीं
........! क्या भगवान को ये सब नहीं दिखता ?
उसने अपने बाबा से पूछा :- "बाबा ! शहादत वो होती है
ना, जब कोई मातृभूमि के लिये मर जाता है !"
बाबा हल्के डाँटने की सी आवाज में बोले :- "मर जाता नही बेटा .......! शहीद
होता है........ऐसा बोलते हैं । वो देश के लिये जीते और देश के लिये खुशी-खुशी जान
दे देते हैं ।"
सुधा :- "अच्छा .... और ये देश उसे क्या देता है ?"
बाबा :- "समझा
नही .....मतलब ?"
सुधा ने सवाल को
फौरन बदला :- "अच्छा ये बताईये, क्या हमारे मुहल्ले में कोई ऐसा है .......जो शहीद हुआ..?"
बाबा :- "हाँ
.. पुराने बरगद के पेड़ के सामने जो घर है.. उधर एक माता जी हैं, उनका ............।" उन्हें बीच में ही
रोककर सुधा बोल पड़ी :- "अच्छा वो बूढ़ी अम्मा ! जिसे सड़क पार करनी होती है, तो कोई ठिठक के रुकता भी नही ! वही हैं क्या ?"
बाबा :- "नही
रुकता..! मतलब ?" फिर उसने जवाब दिया
:- "कुछ नही..!"
रात के खाने के
समय, सुधा खाते-खाते अपनी
थाली से खाना उठा के पीछे छिपाए एक डिब्बें में रखने लगी और फिर झूठ-मूठ ही मुँह
साफ करके अपनी माँ से बोली :- "वाह .....माँ ! आज का खाना बहुत अच्छा था
।"
देर रात सबके
सोते ही उसने मौका देख खिड़की से छलाँग मारी और दबे पैर बाहर निकल गई । रात कितनी
हो गयी ......उसे होश ही नही था और पहली बार शायद इतनी गहरी और सन्नाटेदार रात देख, उसके पैर उठ ही नही पा रहे थे । कुत्तों के
भौंकने की आवाजें, झिंगुर के सप्तम सुर और बीच-बीच में हवाओं से
झाड़ियों के हिलने की डरावनी आवाज । सहम-सहम कर चलती जाती और डर कर पीछे देखती तो
उसे अपना साया ही भूतिया लग रहा था । डरते-सहमते, आखिर वो बूढी अम्मा के दरवाज़े पर जा खड़ी हुई । सामने खड़े बरगद के पेड़ को देख शीत
की ठंडी रात में भी उसे तेज पसीना आ गया ।
घर से अम्मा के कराहने की आवाज़ें आ रही थी । तभी सुधा के
पैरों की आवाज सुन, बूढ़ी अम्मा पूछने
लगी :- "कौन है रे... कौन है उधर !" डरी-सहमी हुई सुधा ने अम्मा की आवाज़
सुन कर तेज चलती साँसों को सँभालते हुए जवाब दिया :- "अम्मा ......मैं हूँ
सुधा..! "अम्मा :- "अरे.. सुधा ! इतनी रात को .. ?" अम्मा उठने की कोशिश
करने लगी तो दौड़ती हुई सुधा आई और बोली :- "अरे ! उठो
नही.. खाना लाई हूँ .. चुपके से !" उसने खाने को जल्दी-जल्दी थाली में कर, उसके पास रखा और बोला :- "अम्मा ! रात नही
होती तो खिला के जाती, ….पर !" अपनी बेबसी पर जिधर वो मायूस
हो रही थी, वहीं अम्मा की आँखें
भर आईं और उसने पास बुला के, लेटे-लेटे उसका माथा
चूमा और बोली :- "शायद यही देखने के
लिये मैं अब तक जिन्दा थी....... तुझे मेरी उमर लग जाये ......जा बिटिया
...।" इतना कह कर उसकी आँखें झरने सी फूट पड़ी । सुधा ने अपने कोमल हाथों से
उसके गालों पर आये आसूँओं को पोछा, फिर कहा :- "मैं अभी जाती हूँ .....सुबह
आउंगी..!"
टकटकी लगाकर, अम्मा उसे जाते हुए देखती रही । उसके पास, मासूम सुधा का दिया, कोमल स्पर्श और अपनत्व का एहसास था, जिसकी अनुभूतियों से उसकी आँखें बरबस ही बरसे जा
रही थीं । ढेर सारे शिकवे थे, उसके मन में, लोगों के लिए ....... जो आज उस कोमल स्पर्श से
मिट गये थे ।
उधर बाहर निकल
कर सुधा को भी अब उतना डर नही था । घर के बाहर उसने बस एक बार, बरगद के पेड़ को देखा ........जो भयावह आकृति
लिये हुए था । आधी आँख बन्द कर उसने तेज दौड़ लगा दी, जो घर पर आकर ही रुकी । फिर धीरे से वो अपने कमरे में गयी
और तकिया चादर के नीचे से हटाकर, अपनी माँ के बगल में
आकर सो गई ।
चिडियों की चहक और
मोगरे की महक के साथ सुबह ने, सुधा की खिड़की पर आ
कर दस्तक दी । खिड़की खुलते ही चेहरे पर पड़ती, हल्की मीठी धूप से ही उसे बूढ़ी अम्मा का ख्याल आया । बिन
मुँह-हाथ धोये ही वो दौड़ कर बूढी अम्मा के घर गई । उनके दरवाजे पर रुकी और आवाजें
देती हुई अन्दर गई ।उसने कई आवाजें दीं .....पर कोई जवाब ना आने पर, वो बैचेन हुई । सोचने लगी, आज तो कराहने की आवाजें भी नही आ रही । उसके
कदमों की चाल तेज़ हो गयी और जैसे ही उसने कोठरी खोली, देखा ...... उधर खाने के बर्तन जस के तस पड़े और
बूढ़ी अम्मा.... गिरी पड़ी थीं, जमीन पर
.........हाथ में तस्वीर लिए हुए, उनके बेटे की । सुधा
तेजी से पास आई । उस अबोध को बहुत देर लगी समझने में कि अब बूढ़ी अम्मा ने त्याग
दिया है वो शरीर, जिसे पकड़ के वो हिला रही है और सहारा देना चाह रही है
। वो रोने लगी चीख-चीख कर, पर उस खंडहर से पड़े घर की आवाजें, मोहल्ले वाले अनसुना करते रहे, हमेशा की तरह ...........।
बहुत देर वहीं अम्मा के
पास बैठी सुधा रोती रही । फिर उसे ढूंढने निकले उसके बाबा को जब उसके रोने की आवाज़
आई तो वो उधर पंहुचे और तब उनके पीछे-पीछे और भी मोहल्ले वाले आए । बाबा ने
अंतिम-संस्कार का इंतजाम किया और फिर जब अंतिम संस्कार के बाद सब अम्मा के घर आये
तो उधर बाहर ही खड़ी, सुबक-सुबक कर रोती सुधा के हाथ में, अम्मा
के परिवार की तस्वीरें देख सभी लज्जित हो, सिर झुका के खड़े हो गये ।
अत्यंत मार्मिक एवं भावपू्र्ण..........शहीद वो होता है जो देश के लिए हंसते हंसते जान दे देता है.......पर यह देश उसे क्या देता है......ज्वलंत प्रश्न.
ReplyDeleteह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ , प्रियंका जी...
Deleteखास कहानी को 15 अगस्त, को शेयर करना था.. !
आपकी टिप्पणी और प्रोत्साहन के लिये आभार ! नमन !
अनुराग
+Anurag ji
Deleteyatharth saarwakaalik hotaa hai... fir aazka log der se samajhaten hai... 15 Agust tk samajh jaaenge.......
badhaiyan Shubhkamanayen
So nice of you Anurag Ji.
ReplyDeleteतरुण भाई !
Deleteह्रदय से आभार , भाई ! आगे भी आपका आशीष स्नेह चहिये !
सादर !!
अनुराग
आज दफ्तर में बहुत काम था, पीछे फेसबुक खुला था और मैं तल्लीनता से दफ्तर का काम कर रहा था कि तभी आपके इस पोस्ट का नोटिफिकेशन पाप अप हुआ। एक तो आपके लेखन का मुरीद और ऊपर से कहानी का चित्र देख अपने आप को रोक नही पाया। आपकी इस कहानी को पढना शुरु किया और जबतक आखरी लाइन नही आ गयी पढता रहा। बहुत मार्मिक कहानी है, आपके लेखन का लोहा तो मैं पहले से ही मानता हूँ, लेकिन इस कहानी ने आपको मेरी लिस्ट् में प्रेमचन्द की क्ष्रेणी में ला दिया है। सुधा का किरदार 'ईदगाह के हमीद जैसा' भावुक और दादी का किरदार बहुत कुछ सोचने पर विवश कर गया। देश के लिये जान देने वाले शहीद की माँ का गरीब और तन्हाँ होना कई बार मेरे मर्म को धिक्कारता है कि हमारे देश में शहीदों की माँ के लिए दिखावे के मेडल देने के अलावा सरकार कुछ और नही करती। जबतक मिडिया न्यूज देता है तबतक सियासती ड्रामा चलता है उसके बाद सुधा जैसी मासुम के अलावा कोई उसकी सुध नही लेता। अनुराग भाई आपकी कलम को मेरा तहदिल सलाम, माँ सरस्वती का आशीर्वाद आपके कलम और आपके विचारों को हमेशा मिलता रहे।
ReplyDeleteसिर्फ एक मासुम ने देखा,
उन बूढी आँखों का पानी,
शहीद की माँ तन्हाँ देख,
मेरी आँखों में आया पानी।
-लेख
शहीद का बेटा अन्तिम साँसे लेते हुए माँ से कहेगा,
वोटो की खातिर देंगे दिखावे के मैडल,
सियासत वालों को माँ वो लौटा देना।
-लेख
लेख भाई...!
Deleteलेखक का जनम दिवस तभी होता है , जब उसको मनचाही टिप्पणी मिल जाये, अभिलेख भाई, चन्दर भाई से सदा ये आशीष मुझे मिला। अभी आपकी टिप्पणी ने भी वो जगह मेरे दिल दिमाग में बना ली। ये आपकी टिप्पणी नही प्रोत्साहन की दिशा में पहला धक्का है !
आगे भी धक्का लगा कर मुझे सफलता की राह में आगे बढाईये!
आत्मविश्वास वही है जो बातों से बढ जाता है
विश्वास करके निकलो रास्ता बंता चला जाता है
इस विश्वास के साथ की आगे भी फीड बेक ऐसे ही देते रहेंगे!
ह्रदय से अनंत गहराईयों से आभार प्रर्दशन की चेष्टा करुँ , भी तो असफल रहूँगा। क्यूँकि आपकी कहे एक एक शब्द छोटे से दिल में उपर से नीचे तक भर आये!
फिर भी मुक आभार प्रर्दशन !!
सादार .. साहृदय !!
आपका अनुज : अनुराग त्रिवेदी - एहसास !!
behad.......bhavpurna bhaiya ........har kisi ko rula doge aap.........
ReplyDeleteनीरज भाई,
Deleteबहुत बहुत आभार ! मर्म आप तक पुहँचना ही था। क्यूँकि आप भी मर्मस्पर्शी लेखक हैं। किंतु , मेरा अनुरोध जरुर स्वीकार करना.. ये ऐसे किसी मित्र को पढवाओ, जिसे पढने में रुची नही..! उसे भी आपकी तरह अच्छी लगी तो मेरा प्रयास सफल है ! लेखनी मेरी सफल है!
यही निशू को कहा.. यही अनु को कहा !!
बहुत सारा प्यार और स्नेह के साथ आभार दोस्त !!
अनुराग
Anurag....... bas ek shabd... speechless!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मुकेश भाई !!
Deleteआशा है आगे भी आप ऐसे ही प्रोत्साहन देते रहेंगे
सादर !!
अनुराग
shuruaat se aakhir tak puri kahaani hume apni aur mere mohalle me ek dadi ki lag rahi thi. achanak se aapne unki yaad dila di. unke bhi 3 bete the aur teeno zinda bhale change. par wo apne pariwaar ke sath maze me rehte hain. aur wo dadi akele khud banaati khaati thi. samay-2 par mai chali jaya krti thi time milne par. par meri didi ghar ka kaam krke unka kaam krne chali jaya krti thi. kuch banaya to unhe de aaya krti thi.
ReplyDeletesardiyon me charpayi is kone se us kone le jana sab yaad aa gaya. dhoop me unke sath baithna, dhoop na nikle to mere ghar aakar aag me haant senkna. sab yaad aa gaya.
par jyada tabiyat kharaab hone pe unhe unki beti apne ghar le gayi. fir wo dadi kai dino baad aai jo chup-chaap soyi hui thi. fir na jaagne ko. shayad aakhiri baar hum logon se milne. meri didi ko bahut dukh hua tha us din.
aur unke bete ye decide kar rahe the k kafan, lakdiyan aur ghee kaun laayega.......
निशू,
Deleteसच कहा तुमने, जिन्दगी में बहुत सी स्मृतियाँ ऐसे होती, जिन्हे सदा हम अपने साथ रखते। खुद तो बडे हो जाते, पर बचपन का वो हिस्सा जिसे लोग किस्स समझते वो वैसे ही सम्हला रखा रहता।
जब कभी फिर हम कभी उसे अनुभव से गुजरते, तो अनुभूतियाँ उसी बालपन को फिर जिन्दा कर देती॥
ये कहानी का विषय संदर्भ भी ऐसा ही है!
सादर !! और ढेर सारे स्नेह के साथ
आभार !!
Anurag ji, Tarife kaabil hai aap ki kahani ...bahut sundar bhavanapurna hai ... jindagi ki sachchai bayan kar di hai aap ne... sachme jindagi ki bhag daud me logon ko itna furusat hi kahan koi kisike liye soche ... lekin bachche bhagawaan ke roop hote hai na samajha kahlate hai lekin ham badon se to bahut hi samajhdaar hote hai ...jo ek choti si atma dekh sakti hai , wo badeon ke nazar me kyun nahi aata samjhame nahi ataa. bahut hi sundar rachna hai ...hardik badhai.. dhanyabaad itni sundar rachana ko hamse padwane ke liye.
Deletemeri blogs bhi ek baar padlijie aur cmnt kariega.
Deleteएहसास जी ..सबसे पहले तो आपको इस खुबसूरत लघु कथा के लिए धन्यवाद । आपने अंपनी सोच को जो मासूम सुधा के चरित्र में डाल कर अपनी व्यथा दर्शाई है ..वो विचारोतेज्क है ...हमारे देश में "रस्म अदायगी " बड़ी ही खूबसूरती से की जाती है ..चाहे वो शहीदों को दी जाने वाली श्रान्ध्जली हो या गरीबों के लिए तथाकथित "फ़ूड बिल "....अच्छी सी भीड ,नेता जी का फेसिअल कराया हुआ चेहरा .नेता जी के समर्थन में नारे ...साथ में चापलूसी मीडिया के पत्रकार (अगले दिन की अखबार में नेताजी के बडे बडे फोटो के लिए )........रस्म पूर्ति के साथ ही नेता जी खुश ...वो क्या समझेंगे उस सुधा की सोच को ...जो मासूम दिल,कोमल मन जिस अंदाज में इंसानियत को इतनी गहरे तक पढ़ लेती है ...वो हमारे ये दौलत और सत्ता के मद में चूर नेता क्या पढ़ा पायेंगे ।
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी ..इस तरह से ही आप उद्वेलित करने वाले विचारों को हमेशा ही परोसते रहे ..कभी कविता के रूप में तो कभी कहानी के रूप में ...आपके आइने में हम देखना चाहते हैं ,,समाज की तस्वीर को । धन्यवाद ।
बच्चे मन के सच्चे ......................ज्यों ज्यों इनकी उम्र बढे त्यों त्यों मन पर मैल चढे ......इस मैल का जिमेदार कौन ...?
चन्दर भाई !!
Deleteआप स्मृतियों के अनुठे मोती से रख देते हैं। आपकी हर टिप्पणी में जो अपनत्व मिलता वही आज लेख भाई की टिप्पणी में मिला। मैने उनसे कहा भी.. और शायद आभार संदेश में भी रोक नही पाया।
मेरी लेखनी सदा आपके प्रोत्साहन की प्रतिक्षा में थी, है और रहेगी।
ऐसे ही चन्दन की खुशबू बन प्रोत्साहित करते रहियेगा...
सादर !
अनुराग त्रिवेदी - एहसास
बहुत ही सुन्दर! आप बहुत ही अच्छे लेखक हैं। पहली बार आपकी कोई रचना देख रहा हूं। पर, आज से आपका मुरीद हूं।
ReplyDeleteइस रचना पर कहने को और कुछ नहीं मेरे पास।
आपको साधुवाद और आपके लेखन को नमन!
सादर!
बहुत बहुत आभार ब्रजेश भाई..!
Deleteमेरी पांडुलिपी सभी गुणीजनों के समक्ष जाने को आतुर है, सोचा अपने मित्रों से पहले एक सेम्पल वर्क की तरह एक कहानी साझा करुँ।
आपका स्नेह सदा मिलता रहे !
सादर !!
अनुराग त्रिवेदी - एहसास
shabd nahi hasi bhaiya kya likhe ho...sare chitra ankho k samne ghum rahe the
ReplyDeleteShabd Hi nai mere pas....Sperlike se bhi jyada kya hota hai aap hi bata do...Aesa likha ki jese dil cheer sa diyaa ho...Ek ek shabd Sidhe dil tak pahucha..Sudha or Amma ka pyaar or Kahani k Marmik Ant Ne Aankho me Aanshu Laa Diye.......Rongte khade ho gaye sach...bahut bahut bahut bahut accche bhai...bahut acche...
ReplyDeletehai toh hai !!
Deleteसच्चे दिल से .. एक ही बात कहूँगा
है तो है!!
अभी सफ़र लम्बा है दुआ मुझे देते रहना
कभी सहारा देना कभी हौसला देते रहना
समझी ..
और सहारी : मतलब तुम्हारी खी खी !! ही ही
हौसला : खमाखाँ की जबरन वाली लडाई ..!!
ये दोनों ऐसे ही कई पात्र को निकालेंगी ... सुधा !!
वैसे सुधा ( चाची का नाम है ) और चाची की किसी एक स्मृतियों से कहानी का ध्येय मिला था...
जब मनीष भूमिया की कहानी " मीठा आलू !! उन्हे पढवाई उन्होने अपनी याद ताजा की.. और मुझे अपनी कहानी का पात्र और विषय मिल गया था !!
बहुत अच्छा लगा कमेंट्स पढ कर ..
ढेर सारे .. है तो है के साथ !
अनुराग.. अनुज ! ..
हाँ आशु अम्मा सभी..!!
बहुत अच्छी कहानी है ....शहीदों के परिवार से जुड़े सारे प्रश्न अपनी जगह .... पर सुधा का अपने पिता से बात करने में असमंजस और फिर उसका रात को सबसे छुपाकर खाना ले जाना खटका .....यदि पिता को वह पूरी बात बता देती तो शायद वृद्धा की समुचित मदद हो पाती
ReplyDeleteह्रदय से आभार ..!
Deleteआगे भी में ऐसे ही प्रोत्साहन देते रहियेगा !
साह्रदय आभार !
अनुराग
अरे ये रचना तो मेरे लिए एक आश्चर्य है मुझे आपके कवि होने का ज्ञान तो था और आपकी लिखावट की मुरीद भी रही हु हमेशा परन्तु कहानी लेखन में भी आप इतने हस्तसिद्ध है यी तो आज ही मालुम हुआ.बहुत ही भावुक और मार्मिक लेखन साथ ही बहुत ही अलग विषय और सोच का बेहतरीन प्रस्तुतीकरण , गर्व है हमें आप पर ....
ReplyDeleteमेरी प्यारी बहना !!
Deleteसबसे पहले अभी आई पोस्टल के जरिये राखी की खबर यहीं देता हूँ !
मेरी पांडुलिपी तैयार है तुम्हारी स्नेह दृष्टी के लिये.. शीघ्र ही छपेगी या पैरों में पहिये लगा, में प्रयासों के रथ दौड के अपनी कहानी को किसी भी तरह से जन जन तक पुहँचाउँगा! उसके लिये !
मुझे प्रिति रुपम !! के ढेर सारे आशीष स्नेह वचन चहिये!
सच्चे दिल से दुआ करना ऐसा संभव हो !!
बाकी ...
वो हाथ हस्तसिद्ध हो जायेंगे , जिन पर प्रेम बंधन बान्धोगी
ऐसे ही राखी के पावन तिथि में मुझे तुम दुआओं से बान्धोगी !!
... दुआ करती रहना !!
अनुराग ढेअ सारे स्नेह आशीष के साथ !
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ReplyDeleteagar kisine apni lekhni se aajtak baandh k rakha hai to wo aap hai kyunki mai aapko aaj se nahi kai din pehle se janta hu..! aapki hae likhawat ke saath jo dhaar bani hai & jo painapan nikhar k aaya hai wo aaj is rachna mein susajjit ho baithi hai..! bahut hi bhawpurna rachna likhi hai! sabse achhi baat ye hai shuruaat se lekar ant tak kahin bhi kisi bhi kism ki ko dhilai nhi hai & uske baad jo shabdon se ehsaason ka chitra ukera wo to kamaal kar gaya hai..! aapne ek chitra lagaya hai lekin aapki lekhni ne na jaaney kitne chitra khade kar diye hai jo yataarth mein kisi ke gharon mein bhi guzar basar kar rahe honge..! English k mashur writer J K Rowling ne kaha hai : ""In a Novel You Have To Resist The Urge To Tell Everything" aur aapne to saakshaat uska pukhta saboot dia hai is kahaani ke maadhyam se..! Sainikon ke pariwaar ki bebasi, hamare samaaj ke beparwaah rawaiya, matlabparasti & bhaagadaudi, masumiyat mein lipte kuch sawaal, kam umra mein wo parpakwata...zindagi ke har pehlu ka nichhod aapne is laghu katha mein bakhubi dhaala hai! mai shukruguzaar is lekhni se awgat krwaane ka..! shaashtaang pranaam hai aapko & aapki lekhni ko..! pehle bhi thi, aaj bhi & marne ke baad bhi meri ruh se yehi dua niklegi ke aapka naam aane wali naslein yaad rakhein, aapko padhe & aur hindi saahitya ko aage badhaaein..! aapka kritaarth ho gaya is rachna ke maadhyam se..! - Abhilekh Dwivedi
ReplyDeleteबहुत बहुत ............ बहुत आभार ! अभिलेख भाई ..
Deleteअभी आभार प्रर्दशन करने जितनी सफलता तो नही पाई, किंतु आपकी टिप्पणी ने मन गद गद कर दिया !
मैने कई बार कहा है, टिप्पणियाँ ही दिशा दिखाती हैं.. वाह ! लाईक कोई भी दे सकता है .. पर टिप्पणियाँ हृदय से निकले भाव होते हैं। और आप सभी ने दिल से टिप्पणी दी .. प्रयास मुझे सफल लग रहा है !
पुन: आभार !
sach me aaj ke loog is bhaag doud bhari jindagee me apni insaniyat kho chuke hai....
ReplyDeletebas jindagee ka matlaab hi yahi rah gaya hai ki bhaago or bhago dusre se teej. is bhagne me chahe kitno ki bhi bali denhi pade.
aap ki is choti si story ne mujhe aaj kam se kam teej bhagne se to nahi laikin. bhagte bhagte insaan ban-ne ka bhi mouka de diya hai.
dhanyawaad...
*rpm
विवेक भाई कहानी का मर्म आप तक पुहँचा सका लेखन सार्थक लग रहा है अब !
Deleteआभार आपको .. और रुपम को !
सादर !
बहुत बढिंया लिखा है आपने अनुराग जी,*RPM
ReplyDeleteकथा के मासूम पात्र अपनी अभिव्यक्ते कर पाया भाव को और आप तक पुहँचा ये जान कर सच्चे दिल से खुशी मिल रही है !
Deleteआपको और रुपम दोनों को आभार व्यक्त करता हूँ
सादर
अनुराग *
bahut khoob Dard dil se guzar kar ankho ke raste se bahar aagaya mamujaan ...................... kya tasaavur ki misaal paish ki hai janab
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रगुजार हूँ की आयुब भाई आपने कथा को पढा आप की लेखनी में वो एक शेर वो वजन रखता की मेरी कहानी कहने में उतना सफल नही होती !
DeleteBahut ki bhaavpurn aur marmsparshi rachna..........
ReplyDeleteमर्म आप तक पुहँचा सका मेरा प्रयास सफल हुआ भाई ..!
DeleteSir aapki ye story me share kar Sakti hu kya apne channel per please reply 🙏🙏
Deleteअनुराग जी ,
ReplyDeleteअत्यंत मर्मस्पर्शी कथा है यह , क्षमा चाहती हूँ कि पहले नहीं पढ़ सकी परन्तु अभी शुरू किया तो पूरा पढ़ कर ही दम लिया..बहुत ही भावुक पल थे इस कहानी में नन्ही सुधा के साथ ...और एक ज्वलंत प्रश्न कि शहादत के बाद शहीद के परिवार को ये देश क्या देता है...
बधाई स्वीकार करें सुंदर , सरल,भावपूर्ण , मार्मिक लेखन हेतु !!!
ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ, और पुन: प्राथना की मेरे ननहे दोस्तों को पढवाईयेगा !!
ReplyDeleteसादर ! अनुराग !!
sundar rachna... kai prashno ko sammilit kiye hue... badhayi..
ReplyDeleteह्रदय से आभारी हूँ !
Deleteगज़ब का मर्म छिपा है कहानी में | सच्चाई बयां करूँ तो पढ़कर मेरी आँख नम हो गई | दादा आप तो आप हैं और रिश्तों के महीन एहसासों को कैसे बयां करते हैं आपसे अच्छा शायद ही कोई कर पाए | मैं कहानी की स्पष्टवक्ता और मार्मिक चित्रण का कायल हो गया | समाज में उठ रहे ऐसे गंभीर प्रश्नों के देश के लिए शहीद होना क्या जायज़ है जब शहीद के परिवार का ऐसा अनादर होता है इस देश में और ऐसी उपेक्षा का सामना करना पड़ता है के बारे में भली भांति परिचित हूँ और सहमत भी हूँ | काश! यह देश और यहाँ के नेता कुछ सुधर पाते .... काश! जय हो अनुराग भाई आपके विचारों की | आपको मेरा सलाम और आपकी लेखनी को प्रणाम |
ReplyDelete*आर पी एम्
तुषार भाई !!
Deleteकृतज्ञ हूँ .. आपका और रुपम का..! सदा ऐसे ही आशीष स्नेह बनाये रखियेगा।
आगे भी अवसर मुझे आपको, और आपको मुझे पढने के माँ शारदा देती रहें इस शुभकामना के साथ
सास्नेह !
नमन !!
उफ़..निशब्द हूँ ...इंसानियत जो बच्चों में होती है ..काश वो हम बडों में भी होती
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !!
Deleteसादर
अनुराग
बहुत मार्मिक और मन को चेतना को झकझोरता प्रश्न ....जो हमारी रक्षा में जान की आहुति देने में एक पल की हिचकिचाहट नहीं दिखाते ...हम उनकी शहादत को सच्चे अर्थों में क्या जीवित रख पाते हैं ?
ReplyDeleteआभार गुरु जी !!
Deleteह्रदय से आभार ! प्रयास लेखन का सफल हुआ! यदी कथा का मर्म मित्रों तक पुहँच पाया। आगे भी ऐसे ही प्रोत्साहन दिजियेगा।
सादर!!
नमन!
आपकी लेखनी ने जज्बाती कर दिया अनुराग जी! बहुत अच्छा लिखा है, शुभकामनाएं!! विशेषतौर से शहीदों की उपेक्षा के लिए सरकारी तंत्र ही नहीं, बल्कि आम समाज भी उतना ही जिम्मेदार है। हम उतने ही असंवेदनशील हैं, जितने कि मंत्री गण। और ईश्वर ने बाल सुलभ गुणों के साथ हमें जितना संवेदनशील और जिम्मेदार बनाया है, वह संरक्षणीय है। बहुत सुन्दरता से उकेरा है आपने अनछुए भावों को। पुन: बधाई!! मेरे इस पेज पर पधारकर अवश्य अपनी राय दें, आभारी रहूंगा https://www.facebook.com/pages/%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%B0/212222062271186
ReplyDeleteकविता लोक के कई मित्रों से शेखर भाई लिंक साझा की, मेरे दुर्भाग्य की ओमप्रकाश दादा जी की टिप्पणी होने के बाद भी अपरिहार्य कारणों से प्रकाशित नही हुई। आपकी टिप्पणी पढ कर मन मेरा खिल उठा!
Deleteआपकी लेखनी खुद ही बहुत प्रेरणादायी है! साथ ही आपका स्वाभाव बहुत विनम्र ! ऐसे ही स्नेह दृष्टी बनायें रखिये भाई
आभार !!
अनुराग
Khoob dada..:) Bahut bahut shubkaamnaye..
ReplyDeleteThank you So much Poornima !!
Deletebahut khoob.....
ReplyDeleteuffffff .... kitne bhaw .. kitna marm ..... aj tak apke kavi roop se parichit thi aj do naye roop or dikhe .. to naye chehre .. ek lekhak ka or dusra .. apke andar jo chitrekar chhupa baitha hai .. uska .. sach bhawo ke chitrkaar ho aap .. janmbhumi ke liye jaan nisaar karne wale ki akeli vridha maa ko paani pilane wala bhi nhi ... ye halat sarkar ki ye upeksha sath ham deshwasioyo ka bhi apne kartavya se vimukhata .. aj logo ko deshsewa se rok rahe hai .. ek masoom bachchi ke jariye jo swal uthaya hai ham ya sarkaar kya karte hai inke liye ..jinke chalte aj desh aman chain ki nid sota hai ... ? sach puri kahani padhte padhte romanch ho aya .. lajawab hai lekhni apki .. badhayi ..yuhi likhte rahiye safalta ki siddhi chadhte rahiye .. majit apke intjaar me bahe failaye baithi hai ..shubhkamnaye ... :)
ReplyDeleteसुनिता जी,
Deleteहृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, आपने जो समय दिया ! बस, भाव अभिव्यक्त करने के लिये कुछ भी कुछ करता हूँ! मुझे आत्मसंतोष होता है। कहानी का विषय ही मर्मस्पर्शी है! प्रयास कर रहा हूँ की सभी मित्रों तक पुहँचा सकूँ भाव ! किंतु , अभी वो सफलता नही मिली !
पर आपने समय दिया कृतज्ञ हूँ ..!
सादर !!
अनुराग त्
aaj se pahele ye eahasash kabhi nahi huaa
ReplyDeletesach kahu to meri ankhon me pani aa gya ...
जितिन जी
Deleteहर्दय से आभार व्यक्त करता हूँ ! आपकी टिप्पणी प्रोत्साहित कर रही है!
ऐसे ही स्नेह और आशीष देते रहियेगा
सादर !
अनुराग
बहुत मार्मिक और सच्ची कहानी पात्र कम सहज सरल भाषा और सशक्त कथ्य l एक ऐसा विषय जिस पर कभी विचार किया भी जाता होगा मुझे नहीं लगता l एक क्षणिक आवेग, कुछ दिनों तक खून उबलता है ,जय जय कार होती है कुछ राजनैतिक रोटियाँ सिकती हैं और उसके बाद सब एक दम शांत ......परन्तु उस घर का क्या जहाँ से ये शहीद तिलक करवा कर निकलते हैं ? जो माएं खुशी खुशी अपने बेटों को देश की रक्षा हेतु भेजती हैं क्या वो भी उतनी ही महान नहीं है पिछले दिनों INS Sindhu rakshak,submarine में हुयी दुर्घटना ने सबको हिला कर रख दिया l उन सैनिकों के पीछे रह गए परिवार जो जीते जी मरे के सामान हो जाते हैं उनकी देखभाल के लिए सरकार क्या कदम उठाती है और हम सब कितने संवेदनशील होते हैं ये बात बेहद चिन्तनीय है l कहानी जो भी पढेगा इस विषय में अवश्य ही सोचेगा l सार्थक एवं समीचीन विषय और प्रस्तुतीकरण ...बधाई आपको
ReplyDeleteआदरणीय ,
Deleteहृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, आगे भी ऐसे ही प्रयास करता रहूँगा आपकी टिप्पणी प्रोत्साहित कर रही है सार्थक सृजन के लिये !
सादर !
अनुराग ...
बहुत अच्छी कहानी...एक सांस में पढ़ गयी...काश कि ऐसी कहानियाँ सुखान्त होतीं... माँ को कुछ नहीं तो थोडा स्नेह ही मिलता...
ReplyDeleteआपने बड़े गंभीर प्रश्न खड़े किये हैं इस कहानी के माध्यम से....लेकिन निरुत्तर है हमारा पूरा समाज..पूरा सिस्टम...
बधाई इस सार्थक लेखन के लिए.
अनु
ps- विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ!!
अनुजी
Deleteबहुत बहुत आभार .. !! खुशी हुई टिप्पणी पढ कर .. प्रार्थना बहुत से मित्रों से की जिन्होने ने समय दिया वो सदैव स्मरणीय रहेंगे!
कृतज्ञ हूँ ..
सादर !
अनुराग
उफ्फ!!!! उफ्फ!!!! ह्रदय विदारक कहानी अनुराग भाई यदि मैं अपना समस्त शब्दकोष खंगाल कर भी कुछ कहने का प्रयत्न करूँ तो केवल निःशब्द के आलावा कुछ हाँथ नहीं लगेगा. एक एक बात को बहुत ही बारीकी से बताया है आपने एकदम शीशे की तरह साफ़. अंत तक पहुँचते पहुँचते आँखें नम हो गईं मन भारी हो गया. कुछ कुछ शब्द जैसे भूल ही गया था आपने पुनः वो शब्द वापस कर दिए जैसे "नागा". भाई जी आपकी लेखनी बहुत ही सशक्त अपनी बात कहने में कामयाब और कैसे कहनी है उसमें माहिर है. आपको हृदयतल से हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं. अब यह सोंच रहा हूँ कि आने में देरी क्यूँ कर दी पढ़ने में. इस हेतु क्षमा चाहता हूँ.
ReplyDeletearun bhai !!
Deleteआप सिर्फ अपना नाम भी लिख कर शे
ष छोड देते तो भी व्यक्तीगत रुची के चलते मेरे लिये बडा आशीष होता। बहुत ही स्नेहिल है आपका नाम.. मुझे लग रहा है, मैं सफल हुआ जो आप ब्लाग तक आ सके ! एक कहानी के मर्म को आप तक पुहँचा सका!
ऐसे ही आशीष स्नेह वर्षा करते रहें ! आगे मैं प्रयास भी अपने बढाता रहूँगा!
साहृदय... नमन!
अनुराग ( पढते हुये, लिखते हुये भी भावविभोर हो रहा हूँ!)
बहुत सुन्दर ,मर्म छू लेने वाली कथा ,सुन्दर सशक्त शबद नियोजन ,हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं ,मंजुल भटनागर
ReplyDeleteह्र्दय से आभार दी..
Deleteसादर
अनुराग
Kya baat hai Anurag ji..kya kahe iske baaare mein..jab yeh pd rha tha to aisa lag raha tha yeh sab meri aankhon k saamne ho rha hai..bohat bohat acha likha aapne..us maasoom bchi ki maasoomiyat aur ammaa ka dard dono hi bohat ache se xplain kiya hua tha..woh raat ka darr, sanaata aur bchi ka halki aankhen bnd krke wapis ghar ko jana..simply awesm :) keep writing
ReplyDeleteHeartily Thanks Rahul **
Deletereg
anurag
अनुराग जी आप बहुत अच्छे कहानी कार हैं साथ ही बहुत अच्छे चित्रकार। . बहुत बेहतरीन कहानी लिखी है , मुझे लगता है आप कवि से बेहतर कहानीकार हैं , इस खूबी को आपने कहाँ छुपा कर रखा था।
ReplyDeleteनीरज भाई ,
Deleteह्र्दय से आभार ... बस भाव को अभिव्यक्त करने के प्रयास करते हैं। बनता जैसा कुछ भी नही बनता है। आगे भी साझा करते रहेगे.. ऐसे ही आशीष स्नेह बनाये रखियेगा!
सादर
अनुराग
मार्मिक कहानी ...लड़की ने वास्तव में सही प्रश्न किया ..यह देश उसे क्या दे रहा है जिसके बुढापे का सहारा हँसते हँसते देश पर कुर्बान हो गया
ReplyDeleteह्रदय तल से आभार दी !
DeleteBohottt hie behtareen rachna bhaia......characterization and message kafi accha hai....mujhe jis tarah bachi ke character ko shape kia hai wo bhi pasand aaya.....story telling bhi bohot acchi hai.....just awesomee bro....acchi kahania dilo mey bas si jaati hai...sochne pe majbur kar deti hain.....maine yeh kuch din pehle hie padhi thi par comment nahi kar paaya tha.....late bhi n latest bhi.....:)
ReplyDeletethanks vishal ***
Deleteheartily Tnks !! brother ..
Bohottt hie behtareen rachna bhaia......characterization and message kafi accha hai....mujhe jis tarah bachi ke character ko shape kia hai wo bhi pasand aaya.....story telling bhi bohot acchi hai.....just awesomee bro....acchi kahania dilo mey bas si jaati hai...sochne pe majbur kar deti hain.....maine yeh kuch din pehle hie padhi thi par comment nahi kar paaya tha.....late bhi n latest bhi.....:)
ReplyDeleteBohottt hie behtareen rachna bhaia......characterization and message kafi accha hai....mujhe jis tarah bachi ke character ko shape kia hai wo bhi pasand aaya.....story telling bhi bohot acchi hai.....just awesomee bro....acchi kahania dilo mey bas si jaati hai...sochne pe majbur kar deti hain.....maine yeh kuch din pehle hie padhi thi par comment nahi kar paaya tha.....late bhi n latest bhi.....:)
ReplyDeleteसंवेदित कर गया आपकी कहानी .समाज की संकीर्ण मानसिकता लिए जीते लोग और ऐसे समय में नायक की तरह खड़ी होती सुधा ..हृदयस्पर्शी रचना ...एक जीवंत संदेश देती हुई और देश तथा समाज से सवाल पूछती हुई ...बधाई
ReplyDeleteगोपाल भाई ..
Deleteबहुत बहुत आभार ..!
सादर
अनुराग
अनुराग जी—इतनी संवेदनशील, मार्मिक कृति के लिये बहुत बधाई. सचमुच यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि देश की रक्षा करने वालों सम्मान और देखभाल नहीं होती। इस बात को आपने बखूबी उजागर किया है। आपको बहुत शुभकामनायें
ReplyDeletegeeta malhotra
गीता मेम
Deleteबहुत बहुत आभार ..!
सादर
अनुराग्
नि: शब्द करता हुआ एक भावपूरण कथा चित्र ........... कह्हानी का प्रवाह उत्तम.शैली विश्लेषणात्मक.भाषा सरल ..कुल मिलकर एक अनुपम कृति
ReplyDeleteआभार मेडम !!
Deleteसादर
अनुराग त्रिवेदी-एहसास
bahut hi bhubsurat kahani likhi hai aapne.kathanak or shilp dono sunder hai. kahani ko bar-bar padne ko dil kar rha hai. aaj ke samey me bujurgon ki ho rhi durasha par aapne bahut achche tarike se parkash dala hai.
ReplyDeleteaapko bahut-bahut badhai hao anurag trivedi ji.
.....milap singh bharmouri
आभार मिलाप जी !!
Deleteबहुत बहुत आभार !!
Bhut Bhut Bhut heart touching story hai Bhai...It's really very greatfull to be in touch with u...IT'S just non commentable & lot's of congratulations to u.
ReplyDeleteSona..! tnks... samay nikla uske liye bhi bht bht bht tks !
Deletemain jyda khush hun **
Bahut Bahut khubsurat, Hriday ko bhitar tak chuti karun kahani... Shbadh bhaw lay sab atyanth khubsurati se ek sutra mai phiroye hai... aapki lekhni ko sadar naman aur bahut subhkamnaye... hare krishna
ReplyDeletebahut bahut aabhaar **
Deletehare krishna ..!
अनुराग, सर्वप्रथम क्षमा ……
ReplyDeleteतुम्हारी कहानी हमारे कमेंट की मोहताज़ नहीं है । इतनी ईमानदारी और खूबसूरती से सारे पक्ष लिखे गए है , उसके लिए मैं आपको सलाम करती हूँ और अपने आपको भाग्यशाली मानती हूँ कि आप जैसे दोस्त मिले।
निवेदिता दिनकर
जब शिखा(गुरु जी) की टिप्पणी आई, तब से ही थी प्रतिक्षा .. प्रोत्साहित करने के लिये हृदय से आभार **
Deleteमुझे आप से कहीं ज्यादा खुशी हो रही है..!
सादर..
नमन आपके साहित्य प्रेम को !
My Ever Dearest bro!!
ReplyDeleteHeartily thanks ...!!
:)
बहुत मार्मिक... जवलंत प्रश्न को बहुत भावुक तरीके से पेश किया है आपने..
ReplyDeleteबहुत मार्मिक... जवलंत प्रश्न को बहुत भावुक तरीके से पेश किया है आपने..
ReplyDeleteनवीन करगेती
नवीन जी
Deleteहार्दिक आभार !
अत्यन्त ही मार्मिक कहानी ........जो कि एक दुखद व चिंतनीय स्थिति को अत्यंत ही संवेदनशीलता से प्रकट कर रही है ।
ReplyDeleteसोचने का विषय है कि अगर शहीदों के आश्रित इस तरह की दुर्दशा और सामाजिक उपेक्षा से पीड़ित होंगे तो भविष्य में शायद देश के लिए कुर्बान होने का जज्बा लोगों में ख़त्म होने लगेगा ।
पर नहीं ....अपने उम्मीद की एक नन्ही सी किरण भी दिखाई है .....'सुधा' के रूप में ....जो सच में शायद अमृत बनकर लोगों की ख़त्म होती हुई संवेदनाओं को पुनर्जीवित कर सकती है ।
भावुक कर दिया सुधा ने, अपने 'मासूम सवालों' से ....।
कहानी अपने कथ्य, भाषा-शैली और विचारणीय विषय के कारण अत्यंत ही सराहनीय है ।
आभार ...
तिष्या जी,
Deleteसर्वप्रथम मैं ह्र्दय से आपको नमन करता हूँ ... कथा में जो भाव सभी पाठक को दिल को छुये हैं.. उसे आपने अपनी इस टिप्पणी में कह कर मुझे प्रोत्साहन दिया। आप जैसे ही प्रशंसक हिन्दी सहित्य को चहिये। जो सदैव लेखक के भाव को इतना उर्जाशील बना देते हैं कि वो फिर एक के बाद एक कृतियों को बढाते चले जाते हैं।
मासूम सवाल ..! इस कहानी के पीछे एक रोचक घटना हैं .. जो मैने नानी से साझा की.. और जिस तरह से उन्होने उस कथा की प्रेरणा को सहर्ष स्वीकारा.. एक लघु कथा के रुप में आज सभी पढ रहे हैं।
* आपने जिस तरह से उस आशा की किरण का उल्लेख किया.. सच मनिये... मन गद गद हो गया। मुझे लग रहा है मेरा प्रयास सफल हो गया।
मैने कितना कुछ लिखा है किंतु.. अत्याधिक प्रोत्साहन मुझे इस भाव अभिव्यक्ती को मिला!
मैं आपको नमन करता हूँ.. आप सभी को वन्दन करता हूँ .. और यही कहूँगा की आगे भी जो साझा करुँगा वो भी भावतुल्य ऐसा ही होगा.. ..
आपकी शुभकामनायें मिलती रहें, यह मेरी प्रार्थना है!
सादर..
सहृदय
नमन !!
अनुराग त्रिवेदी- एहसास
मासूम सुधा के माध्यम से कुछ ज्वलंत प्रश्न खड़े करती हुई एक सशक्त कथा, जो कि अपनी सहज संवेदनशीलता के कारण अत्यंत ही भावनात्मक रूप से मर्म पर चोट कर रही है ।
ReplyDeleteबधाई एवं आभार ...
ह्रदय तल से आभार । ऐसे ही आशीष स्नेह टिप्पणी देते रहिएगा ।
Deleteसादर !
बहुत ही सुन्दर कहानी , शुरू से अंत तक बांधे रखने में सक्षम , मासूम लेकिन परिपक्व |
ReplyDeleteसंक्षेप में कहूँ तो भावों की सुधा बहा दी आपने |
सादर
हार्दिक आभार !
Deleteमैं ना तो कोई बड़ा लेखक हूं और ना ही कोई नामचीन आलोचक। लेकिन हां, अगर एक पाठक होने के नाते कहूं तो कहानी सचमुच ह्रदय स्पर्शी बन पड़ी है। हम इंसानों की इंसानियत पर सवाल खड़ा करती एक भावपूर्ण रचना। अनुराग जी को कृति के लिए बहुत-बहुत बधाई!!
ReplyDeleteहमेशा यूं ही लिखते रहिए!
ReplyDeleteबेहद संवेदन शील ,सार्थक ओर सशक्त विषय को लेकर लिखी गयी इस कहानी को पढ़कर मन के कोने में छिपी कई यादें ताज़ा हो गयी……कई जख्म हरे हो गए ये कहानी नहीं बल्कि कटु सत्य को उजागर करती यथार्थ के धरातल पर कड़ी इक सच्चाई है ! इक स्वतंत्रता सेनानी की बेटी होने के नाते इसमे अभिवयक्त पीड़ा को मैंने कहीं अपने अन्दर महसूस किया…।सार्थक चिंतन के कई द्वार खोलती सुन्दर कथ्य ,भाव, शब्द संयोजन ओर जीवन्तता से भरपूर मर्मस्पर्शी कहानी जिसके लिए आप बधाई के पात्र है…आपकी लेखनी हमेशा उतरोत्तर लेखन की ओर अग्रशील रहे जिससे समाज को नयी दिशा मिले.......
बेहद संवेदन शील ,सार्थक ओर सशक्त विषय को लेकर लिखी गयी इस कहानी को पढ़कर मन के कोने में छिपी कई यादें ताज़ा हो गयी……कई जख्म हरे हो गए ये कहानी नहीं बल्कि कटु सत्य को उजागर करती यथार्थ के धरातल पर कड़ी इक सच्चाई है ! इक स्वतंत्रता सेनानी की बेटी होने के नाते इसमे अभिवयक्त पीड़ा को मैंने कहीं अपने अन्दर महसूस किया…।सार्थक चिंतन के कई द्वार खोलती सुन्दर कथ्य ,भाव, शब्द संयोजन ओर जीवन्तता से भरपूर मर्मस्पर्शी कहानी जिसके लिए आप बधाई के पात्र है…आपकी लेखनी हमेशा उतरोत्तर लेखन की ओर अग्रशील रहे जिससे समाज को नयी दिशा मिले.......
ReplyDeleteहार्दिक आभार रेखा जी !
Deleteअनुराग भैया....हर एक पहलू इतने चीख चीख के संवेदनाओ को प्रकट कर रहे...मानो हम काली कालिख मे लिपटे भावपूर्ण शब्द न पढ़ रहे हो....बल्कि कोई चलचित्र के सामने बैठे हो....!!!
ReplyDeleteअब शब्द कम पड़ेंगे बताने की खातिर...शायद हाँ आपको गुरु बना कर इस हफ्ते शायद हम भी कुछ लेखन शुरू करे....गद्य की...!!!
Anurag bhaiya mere pass shabd ni h ki kya kahun itne sahi tarike se likha h apne ki aisa lga mujhe ki me bhi is kahani ki koi patr hun is kavita me jo dard h use mahsoos krke padhte padhte me bhi rone lagi n abhi tak hi ro rahi hun is kavita me jo viyog ras or karuna ras ka jo sangam kiya h kabile tareef h :) :)
ReplyDeleteAnurag bhaiya mere pass shabd ni h ki kya kahun itne sahi tarike se likha h apne ki aisa laga ki me bhi is kahani ki koi patr hun is kahani me jo dard h use mahsoos kr ke padhte padhte me bhi rone lagi or abhi tak ro hi rahi hun kahani me jo viyog ras or karuna ras ka jo sangam kiya h wo kabile tareef h :) :P
ReplyDeletebahut hi sarthak sandesh preshit karti kahani .aabhar
ReplyDeleteह्रदय तल से आभार शिखा जी !
Deleteसादर
अनुराग
bahut achhi kahani hai shayad kahani nai hai sachhai hai par kitni sudha hai samaj me iska andaza laga pana thoda mushkil hai.
ReplyDeleteaur shayad samajh me ye nai a raha k kahani ki tareef kis marm k liye karun.... shahidon k parivaar ki iss marmik dasha k chitran k liye, ye us anjaan par masoom rishte k liye jo tab tak rahta hai jab tak so called dunia ki samajh humme nahi a jaati... par ek baat jarur kahungi us pucche hue masoom sawal me mujhe aapki sanjidagi dikhai deti hai.....
बहुत बहुत खुशी हुई आपका कमेंट्स पढ़ कर
Deleteतहे दिल से शुक्रगुजार हूँ
सादर
बहुत दुखभरी कहानी!
ReplyDeleteसाथ में एक सवाल लिए हुए भी...!
काश! इसका अंत ... कुछ आशावादी होता ... :(
~God Bless!!!
बहुत बहुत शुक्रिया अंकिता जी
Deleteसह्रदय आभार
bahut hin marmik chitran hai. dil ko chhu gaya anurag ji
ReplyDeleteह्रदय तल से आभार !
Deleteमर्मस्पर्शी कहानी...कई सवाल खड़े किए इसने...शहादत के बदले देश क्या देता है...बड़ों की इंसानियत कहाँ गई...छोटी बच्ची जो घर में बता देती तो उसपर बंधन लगा दिया जाता...सहज सरल शैली में लिखी गई कहानी अपना प्रभाव छोड़ने में पूरी तरह सफ़ल है...सारगर्भित कहानी के लिए सादर बधाई...चित्र में कहानी के भाव उतर आए हैं...लेखन यूँ ही जारी रहे...शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteबेहद उत्साह बढ़ा रही है आपकी टिप्पणी ! तेडी मेडी लकीरों ने जो तस्वीर उकेरी वैसे ही कथा में छुपे मर्म हैं जो तस्वीर को बदलना चाहते हैं । चाहते हैं हस्त सिद्ध आगे आ जाएँ और तस्वीर सुंदर हो ।
Deleteह्रदय तल से आभार ऐसे ही प्रोत्सहित करते रहियेगा
सादर नमन !
अनुराग
Atyant hi bhaav purna evam hridaya sparshi rachna..Yun prateet ho raha tha jaise ki pura drishya aakho k saamne hi ho..
ReplyDeleteशहीद वो होता है जो देश के लिए हंसते हंसते जान दे देता है.......पर यह देश उसे क्या देता है......ज्वलंत प्रश्न.
Its rightly said that "Child is the father of man." Sudha un sabhi logo k liye ek prerna hai jo buzurgo ki izzat nahi karte..
Logo ko is baat ka aatma-chintan karna chahiye ki ek sipahi jo apne vatan ki raksha k liye apne praan nyochawar kar k shaheed ho jata hai taki uske deshwaasi chain se so sake..wo unse kuchh bhi nahi maangta..par humara kartavya hai ki hum unhe evam un k parivar ko pyaar aur yathochit samman de..Hume sadaiv ye smaran rakhna chahiye ki unhi ki badaulat hum surakshit hai.
It takes a big heart for a mother to let her son join the armed forces.We should always give them due respect that they rightfully deserve & should support them in whatever manner we can.
Ishwar kare aap yuhi achha likh k hume prerit karte rahe..Shubhkamnayein..
देविका टंडन जी
Deleteह्रदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ और आप सभी ऐसे ही प्रेरक टिप्पणी देंगे तो अवश्य प्रयास मेरे आशा व् उत्साह से भरेंगे
ह्रदय तल से आभार !
अनुराग भाई इतनी बेहतरीन कहानी बहुत कम पढने को मिलती है बहुत खुसी हुई की आखिर उस दर्द को आपने अपने शब्दों में पिरोया जिसे सब अनदेखा कर देते हैं...
ReplyDeleteसंदीप भाई
Deleteहार्दिक आभार !
आगे भी स्नेह ऐसे ही दीजियेगा
पहले तुम्हारी कहानी पढ़ी..फिर टिप्पणियाँ..और आश्चर्य हुआ ...कि आज तक मैं तुम्हे पढ़ने से वंचित कैसे रही......लेकिन तुमने यह लिंक मुझे भेजकर मुझपर एहसान किया ..शुक्रिया.....
ReplyDeleteकहानी पढ़ी .....बहती गयी...कथा भी ...मैं भी ....और उमड़ता गया 'स्नेह' सुधा के लिए और 'वेदना' अम्मा के लिए .....और दुःख हुआ अपने सिस्टम की निकृष्टता पर .....क्या इसी तरह ज़िम्मेदारी निभायी जाती है ....Is that all we owe to the Martyrs and their families.....
आदरणीय सरस जी
Deleteबहुत बहुत खुशी हो रही आपकी टिप्पणी पढ़ कर । ह्रदय तल से आभार !
आशीष स्नेह ऐसे ही देते रहिएगा
सह्रदय नमन
अनुराग
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ReplyDeleteह्रदय से साधुवाद अनुरागजी ,
ReplyDelete------------------- आपकी इस रचना ने आपके नाम को सार्थक कर दिया। जितना भी प्रेम करुणा, दया और अनुराग आपके अंदर था। आपने इस कहानी में उसे सजीव कर दिया। हम सभी को भावोँ कि गंगा मे तैराकार , "स्वयं " के भाव से मुक्त करा दिया। गंभीर सवाल और मार्मिक पीड़ा को उजागर करती आपकी रचना। बधाई आपको. एक सराहनीय सृजन के लिये।
" की आपकी बात की
बात ही कुछ यूँ थी की ,
उसके बाद कोई और बात
इतने करीब से न गुजरी "
------------------------------------ निधि नित्या ----------------
ह्रदय तल से आभार !
Deleteएक बेहतर व मार्मिक कथा की जीवंन्त प्रस्तुति सराहनीय है। शब्द-शब्द बोलते से लगे। कहानी की अपनी सामर्थ्य व पहचान कायम रहेगी---इस उम्मीद के साथ विषय चयन, वाक्य गांभीर्य तथा कथा के मानकों को साथ में संजोये कथाकार को ढेरों आशीर्वाद। लेखनी अपनी साधना प्रक्रिया में अनवरत आगे बढती रहे। वाग्देवी की दया बनी रहे------इस कामना के साथ-----
ReplyDelete--------अरुण गोरखपुरी
ह्रदय तल से आभार !
DeleteWhat a deep and realistic thought. The question asked by the little girl is a very serious and important question.The martyrs of our country have never got what they actually deserved. If this is the condition of the family of the martyrs,then in future people will think twice before giving their lives for our motherland.
ReplyDeleteHeartily thanks shubendu ji
DeleteIs se ye sikhne mila ki help aur sewa ki na koi umra hoti h aur na hi koi vises soch ye to hmari antaratma ki awaz hoti h....nic sir
ReplyDeleteThank you so much ankit ji
Deleteप्रिय बंधु अनुराग ,, शायद मैं आपकी यह पहली कहानी पढ़ा है " मासूम सवाल" लेकिन अब एक सवाल खुद से है कि अब तक आपकी अन्य कहानिया पढ़ा क्यों नहीं ।। मित्र ,, कमाल की लेखनी है आपकी ।। और गद्य लेखन में अद्भुत महारत भी ।। बेहतरीन ।। कमाल ।। समाज के इस मार्मिक पक्ष पर आपकी नज़र पड़ना यह साबित करता है कि आप एक भावुक और दयावान व्यक्ति भी हैं ।। यह सवाल वाक़ई बड़ा है की जिस घर से कोई शहीद होता है समाज उनको क्या देता है ।। पुनः बहुत बहुत बधाई और असीम शुभकामनाएं ।।
ReplyDeleteसोहन भाई
Deleteह्रदय तल से आभार _/\_
इस कहानी में एक साथ अनेक प्रश्न उठाए गए हैं
ReplyDeleteपहला मां के देशभक्त बेटे की कहानी।
दूसरा सुधा की मासूमियत।
तीसरा बूढ़ी मां का स्नेहिल व्यवहार।
चौथा बच्ची की निश्चल भावनाएं।
पांचवां उस मोहल्ले में यूं कहें कि समाज में बूढ़ी 2 दिन से दिखाई नहीं दी और उसकी खबर लेने वाला कोई नहीं था।
बच्चे की मासूमियत और उसका सहयोगात्मक रवैया।
एक बात अच्छी लगी कि सुधा के पिताजी भी चरित्रवान हैं और वह अपनी बेटी को सदाचरण की शिक्षा देते है। कुल मिलाकर कहानी का ताना-बाना बहुत अच्छे ढंग से बुना गया है।
कहानी में भाव हैं।
उद्देश्य है और नैतिकता भी है।
कहानी एक ही बार में पढ़ ली जाती है और उस पर मन चिंतन को मजबूर भी हो जाता है।
यह कहा जा सकता है कि कहानी लेखन में बजाए कलात्मकता के भावों को प्रधानता दी गई है और ऐसा लगता है कि कहानीकार भी संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। मैं कहानीकार को बधाई के साथ ही आभार भी व्यक्त करना चाहूंगा कि उन्होंने ऐसी कहानी लिखकर समाज को सदाचरण और संस्कारवान होने का संदेश भी दिया है
एक बार पुनः बधाई।
-डॉ विजय तिवारी "किसलय" जबलपुर
इस कहानी में एक साथ अनेक प्रश्न उठाए गए हैं
ReplyDeleteपहला मां के देशभक्त बेटे की कहानी।
दूसरा सुधा की मासूमियत।
तीसरा बूढ़ी मां का स्नेहिल व्यवहार।
चौथा बच्ची की निश्चल भावनाएं।
पांचवां उस मोहल्ले में यूं कहें कि समाज में बूढ़ी 2 दिन से दिखाई नहीं दी और उसकी खबर लेने वाला कोई नहीं था।
बच्चे की मासूमियत और उसका सहयोगात्मक रवैया।
एक बात अच्छी लगी कि सुधा के पिताजी भी चरित्रवान हैं और वह अपनी बेटी को सदाचरण की शिक्षा देते है। कुल मिलाकर कहानी का ताना-बाना बहुत अच्छे ढंग से बुना गया है।
कहानी में भाव हैं।
उद्देश्य है और नैतिकता भी है।
कहानी एक ही बार में पढ़ ली जाती है और उस पर मन चिंतन को मजबूर भी हो जाता है।
यह कहा जा सकता है कि कहानी लेखन में बजाए कलात्मकता के भावों को प्रधानता दी गई है और ऐसा लगता है कि कहानीकार भी संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। मैं कहानीकार को बधाई के साथ ही आभार भी व्यक्त करना चाहूंगा कि उन्होंने ऐसी कहानी लिखकर समाज को सदाचरण और संस्कारवान होने का संदेश भी दिया है
एक बार पुनः बधाई।
-डॉ विजय तिवारी "किसलय" जबलपुर
विजय भाई
Deleteह्रदय तल से आभार _/\_
बढ़िया कथा।
ReplyDelete_/\_ हार्दिक आभार ...!
ReplyDeleteबहुत बहुत ही सुंदर और मार्मिक है कहानी है। इससे सिखने की जरूरत है। ये केवल एक ही सुधा को नही बल्कि जितने भी ऐसे हजारों करोड़ो सुधा के साथ साथ हर एक ब्यक्ति और युवक को समझना होगा। आज हमारे समाज को ऐसे ही ब्यक्तियों की जरूरत है।
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