कैसे बुजुर्ग सवाल खूंटी में टांग आते हैं !
रहती नही फिक्र उन्हें फिर,
नींद की तगड़ी खुराक ले, सुबह उठ जाते हैं ।
कैसे वो अपने बुजूर्ग जीते !
और हम जीते जी जिन्दगी नरक बनाते हैं ।
हैरत हुई, सुन कर मुझे !
पर सच है ऐसे ही नही वो बुजुर्ग हो जाते हैं ।
दिन मशक्कत से गुजारते हैं,
रातों को ख्वाब फिर वो नया सा सजाते है ।
क्या देखा है तुमने उन्हे कभी ?
घर में आते ही झुर्रियों से मुस्कुराते हैं ।
खिल पड़ते पोपले गाल उनके,
नंदू को कंधे पर बिठा घोड़ा बन जाते हैं ।
आज के नये दौर में हमें,
ऐसे भरे पूरे परिवार किधर दिख पाते हैं ?
घर के सदस्य घर में ही,
सीमांकन में बँट, कट कर रह जाते है ।
एक को दूजे के लिये फुर्सत नही,
बस एक दूजे को खरी खोटी सुनाते हैं ।
वो बूढ़ा दरख्त कहता है !
मनुष्य ही कलयुग को निमंत्रण दिये जाते हैं ।
खुब हुआ तो देखिये उन्हे !
इधर-उधर भीड़ लगा भंडारे/लंगर लगाते हैं ।
ये नेक दिल श्रीमान ऐसे हैं !
जो गरीब की बोटी,बेटी नोच हिसाब में चढ़वाते हैं ।
तो कहो ... ! क्या है सवाल ?
हम एक टहनी झुकाते, और न्यौता तुम्हे दिये जाते हैं ।
टांग दो सवाल वो सारे के सारे,
जो ज़ेहन में तुम्हारे अपलक अनवरत आते है ।
Behad umdaaa bhaiiii.....sach hai ki aaj kal ka waqt aur log pehle se nahi....is ehsaas ko badi acchi tarah pesh kia hai....awesome !....bas ek aur baat screen ke background aur text ke colour contrast ki wajah se last ka text clear nahi hai.....kripa use dekhiyee anurag bhai.....:)
ReplyDeleteविशाल भाई !
Deleteबहुत बहुत आभार *** मैने आपको पोस्ट किया ...
सही हुआ जो बता दिया आईन्दा ध्यान रखुँगा , फोंट्स के रंग तय करते वक्त !
सादर
अनुराग
बहुत सुंदर तरीके से इस विडंबना को व्यक्त किया है अनुराग जी आपने
ReplyDeleteएक छत के नीचे अब कम ही संयुक्त परिवार दिखते हैं
जी, मेम एक दम सही फरमाया आपने ..सच ये विडंबना ही है, एक घर के नीचे संयुक्त परिवार नही बस पाता .. वो खुशी अधुरी सी रह जाती है.. जिसमें भाई-बहन का लडक्कपन उम्र के साथ बढा होता और अटूट बंधन में बंध के एक दुजे को सामर्थ देता एक नव समाज के निर्माण का ।
Deleteहर्दय से आभार !
सादर
अनुराग
kya baat hai.. bahut hi alag dhang se aapne unke jeevan ko bahut nazdeek se bayaan kiya hai..
ReplyDelete--sudeep
सुदीप भाई !
Deleteहर्दय से आभार ... आपकी टिप्पणी से भाव अभिव्यक्ती को प्रोत्साहन मिलता है । आपके सृजनधर्मिता को शत शत नमन भाई !
सादर
:अनुराग
दुरुस्त फ़रमाया है तुमने ऐ दोस्त। बहुत सही , बहुत उम्दा, !!
ReplyDeleteइसमें कोई शक नहीं कि तुम बहुत बढ़िया लिखते हो !!
खूब लिखते रहिये ....
निवेदिता
बहुत बहुत आभार ************************************
ReplyDeletebhaut bhaut *** bhaut aabhaar nivi !!!
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