Sunday 15 December 2013

सफेद चादर में सो जाती है !




नारी के कोमल मन में कितनी ही बातें दब जाती है 
वो नही कह पाती कभी किसी से, बस उसे छुपाती है 

विडम्बना है, कि कैसे वो सुख-दुःख का इजहार करे !
अपनी पीड़ा छिपाने को, खुद गठरी बन सो जाती है 

शिशु रुप ले लेती है ....जब घुटने छाती से लगते ! 
बच्चे के पेट को छूते ही सजग हो माँ जाग जाती है  

अपनी परेशानी उसके लिये महत्व कभी ना रखती, 
परिवार के लिये खुद को भुलाती, खो सी जाती है

जिन पर वारा उसने सब कुछ …वो उसे भूल बैठे 
उस वक्त उसकी सम्वेदनायें शिथिल हो जाती हैं  

प्राण-हीन जीवन रह जाता और वो सहती रहती ! 
फिर अनकही वेदना ले, सफेद चादर में सो जाती है





                                                        चित्रांकन गूगल से साभार 

61 comments:

  1. सच ! सफ़ेद चादर न सिर्फ कफ़न बल्कि उसकी बेरंग ज़िन्दगी का भी सूचक होता है :(

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्पर्श जी,

      एक दम सही कहा आपने ... ह्र्दय तल से आभार !

      सादर !

      Delete
  2. बड़ी ही खूबसूरती से नारी के मन में आते जाते भावों का वर्णन करती आपकी ये अभिव्यक्ति ..... कितना भी कुछ भी ओर कैसा भी हो जाए.....
    फिर अनकही वेदना ले.....सफ़ेद चादर ओढ़ सो जाती .... नतमस्तक :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. आरोही जी ,

      ह्र्दय तल से आभार !

      नमन !

      Delete
  3. एक भाव-प्रधान रचना ,बिना छांदस आडम्बर के !

    ReplyDelete
    Replies
    1. देवदत्त जी ,

      बहुत बहुत आभारी हूँ !

      सादर नमन् !

      Delete
  4. सच लिखा आपने .एक पुरुष ने नारी मन की भावनाए उकेरी अति उत्तम भाव

    ReplyDelete
    Replies
    1. नीलिमा जी ,

      भाव अभिव्यक्ती की सरहना कर प्रोत्सहित करने के लिये! ह्र्दय तल से आभारी हूँ

      सादर !

      Delete
  5. सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति .मंजुल भटनागर

    ReplyDelete
    Replies
    1. दीदी,

      ह्र्दय से आभारी हूँ प्रेरक टिप्पणी के लिये !

      सादर

      Delete
  6. नारी मन की वेदना को शब्दों में अभिव्यक्त करने का बहुत सुंदर प्रयास किया है आपने ...सचमुच अपनी सभी पीडाओं को सफेद चादर तक ले जाती है...

    ReplyDelete
    Replies
    1. अनिता जी ,

      ह्र्दय तल से आभार व्यक्त करता हूँ !

      सादर !

      Delete
  7. पुरुष होकर स्त्री पर लिखना आपके संवेदनशील ह्रदय का परिचय है जिसका मै स्वागत करती हूँ

    ReplyDelete
    Replies

    1. ह्र्दय तल से आभार व्यक्त करता हूँ

      सादर !

      Delete
  8. आप बहुत संवेदनशील हैं. नारी के अंतर्मन में प्रवेश कर आपने नारी की वेदना को समझा है और उसे उकेरा है. बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. गीता मेम ,

      ह्र्दय तल से आभार !

      सादर !
      अनुराग

      Delete
  9. Bhut hi khubsurati se aapne ek naari ki bhawnao asamnjason aur unke jivan ki sachchaiyon ko vyakt kiya hai apko bhut bhut nadhai ho bhaiya....Very nice Composition..:)

    ReplyDelete
  10. bahut hi sarthak abhivyakti hai nari jeevan ki

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्र्दय तल से आभारी हूँ !

      सादर ..!

      Delete
  11. कई रंगों की तीव्र या उच्च आवृति के सामंजस्य से श्वेत रंग का अभ्युदय होता है..वैसी ही नारी है...खुद में जीवन के कई रंगों को समेट कर धवल रूप में एकाकार करती..... आपकी अभिव्यक्ति ने इस भाव को और मुखर कर दिया....साधुवाद :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद प्रेरणादायी टिप्पणी के लिये ह्र्दय तल से आभार व्यक्त करता हूँ !

      बहुत बहुत आभार

      सादर !
      : अनुराग ..

      Delete
  12. speechless. samajh hi nahi aa raha kya likhe.
    shishu rup le leti hai wali line sabse jyada acchi lagi. :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. http://madhurgunjan.blogspot.in/2012/06/blog-post_10.html

      निशू ये पढो ..

      Delete
  13. anurag ji nari charitra ko chitrit karti sundar rachna .. par paksh ko khubsurati se ubhara hai apne ..badhayi

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार नेह जी ...!

      एक भाव इसे भी साझा करता हूँ कृपा पढियेगा !

      http://madhurgunjan.blogspot.in/2012/06/blog-post_10.html

      Delete
  14. बहुत अच्छा लिखा...नारी के साथ कई अनकही वेदनाएँ जुड़ी रहती हैं...भावपूर्ण रचना|

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्र्दय तल से आभारी हूँ ..! मुझे आपकी रचना भी बेहद मर्मसप्र्शी लगी , बिन अनुमति मित्रों से लिंक साझा कर रहा हूँ !

      ह्र्दय तल से नमन वन्दन !


      Delete
  15. Bahut sahi baat hai Anurag bhai...har smvedna ko bayaan nhi kia ja sakta...aapki is koshish k aapko naman...aaj ki taarikh mein bhi stri apni vyatha kah nhi paati..bahut bhawuk ehsaason se piroyi is rachna ko sat sat naman...! - abhilekh

    ReplyDelete
    Replies
    1. अभिलेख भाई,
      ह्र्दय तल से आपका आभारी हूँ ! बहुत बहुत आभार प्रेरक टिप्पणी के लिये भाई .. आगे भी प्रयास करता रहूँगा .. स्नेह आशीष बनायें रखियेगा !

      सादर !

      Delete
  16. बहुत भावपूर्ण .. स्त्री चरित्र को बखूबी शब्द दिया है आपने ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. नीरज भाई !

      मुझे आपकी टिप्पणी की प्रतिक्षा थी .. बहुत बहुत आभार !

      सादर !

      Delete
  17. सत्य ही है......जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते संघर्ष करती जाती हैं परन्तु..................... शाम ढले गर के काम काज और बजट का हिसाब लगाते हुए उन पलों का सही सही हिसाब कहां लगा पाती है जो उसने अपने लिए जिए........अत्यंत भावप्रवण अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  18. सत्य ही है......जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते संघर्ष करती जाती हैं परन्तु..................... शाम ढले गर के काम काज और बजट का हिसाब लगाते हुए उन पलों का सही सही हिसाब कहां लगा पाती है जो उसने अपने लिए जिए........अत्यंत भावप्रवण अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्र्दय तल से आभार प्रियंका जी !

      सादर !

      Delete
  19. भाव निःसंदेह बहुत अच्छे हैं....
    ग़ज़ल की दृष्टि से देखने पर हो सकता है कुछ कमियाँ हो...नियम तो हम खुद नहीं जानते हाँ,लय में गाई जा सके उस ग़ज़ल को हम बहर में मानते हैं.... :-)
    शुभकामनाएं!!!
    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! बहुत बहुत आभार !

      ये गज़ल नही है ..पूर्ण्त: छन्दमुक्त भाव अभिव्यक्ती है !

      मापनी ( बहर ) की जटिलातों में हार जाता हूँ ... पर ये किया है आद्रणीय मित्र मधु जी ने !

      साझा करुंगा लिंक ...


      बहुत बहुत खुशी हुई टिप्पणी पढ कर

      सादर अनु जी !

      Delete
  20. जी बहुत ही भावपूर्ण है। …… सच ही तो है कितना कुछ सहती है नारी परन्तु अंततः उसे ही समझोता करना पड़ता है हर चीज
    से शायद ही कोई नारी क मन की वेदना को समझ सके…

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार मनदीप जी !

      सादर !

      Delete
  21. अनुराग आप बहेतर लिख लेते हो--

    ReplyDelete
    Replies
    1. राजू भाई

      ह्रदय तल से आभार !

      आपकी टिप्पणी पढ़ कर बेहद खुशी हुई भाई

      सादर
      अनुराग

      Delete
  22. ज़िंदगी यूँ ही बीत जाती है अक्सर और हम अपनों के दर्द से बेपरवाह भटकते रहते हैं ....जाने वाला दर्द खुद में समेटे अकेला ही चलाए जाता .
    मर्मस्पर्शी ........

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्रदय तल से आभार गुरु जी

      सादर

      Delete
  23. Bahut hi bhavpurna evam sundar rachna..Hats off 2u..:)

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्र्दय तल से आभार देविका जी !

      सादर !

      Delete
  24. Behad marmsparshi rachna hai bhaiya,naari k sangharshh to ujagar karti,

    ReplyDelete
    Replies
    1. तरु ,

      ह्र्दय तल से आभार !

      Delete
  25. नारी मन की पीड़ा को समझा ....उसके लिए आभार

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रोत्साहन देती आपकी टिप्पणी को सह्र्दय नमन !

      ह्र्दय तल से आभार !

      Delete
  26. Umda chacha............par nari me aa rahe badlav (sakaratmak aur nakaratmak) ko rekhankit nahi kiya ja raha aajkal .........us par vichar karna aaj ki bahut badi sahityik jarurat hai

    ReplyDelete
    Replies
    1. सोमू

      सच कहा तुमने और मैंने अनुभव किया की संचार से जुड़ने के बाद तार की तरंगो की तरह ही बातें उठ कर आईं हैं। अब सहित्यक विधा में लोग लेख,लघु कथाएं, अभिव्यक्ती प्रेषित कर रहे हैं ।

      और भी प्रखर होता रहेगा जो पाठक प्रोत्साहन ऐसे ही देते रहेंगे।

      सस्नेह नमन दोस्त

      Delete
  27. behad hi bhawpurna ,umda kavita....aur sahi likha tumne ki ant me jab apne tyag ka sahi pratifal nahin milta to mano bikhar jati hai aurat...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार ! आगे भी आपकी प्रोत्साहन टिप्पणी की अभिलाषा है।

      सादर

      Delete
  28. kya kahun anurag ji nishabd hun ..behtareen rachna ..kam shabdo mei hi sab keh diya aapne .... aurat apne liye kuch karna bhi chahe to use swarthi samjha jaata hai selfish khte hain log use .. rachna ko naman

    ssneh

    parul

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्रदय से आभार पारुल जी !
      आपकी भाव अबिव्य्क्ती " चीख ' जितना ही समभाव प्रयास था
      हांर्दिक आभार

      Delete
  29. इसके बावजूद....उसे इस बात का कोई दुःख नहीं ....वह बस दूसरों के दुःख कम करना चाहती है ...और वह भी ख़ुशी ख़ुशी .....एक पुरुष मन से उठते यह भाव ...अच्छे लगे

    ReplyDelete
  30. सह्रदय नमन!

    ReplyDelete
  31. वाह शब्द ही नहीं है मेरे पास ताकि आपकी अभिव्यक्ति को बयां करूँ । नारी के जीवन का सही व सजीव चित्रण ...

    नारी है तू महान , तेरी शक्ति गान हम गाते हैं
    तेरे बलिदानों के आगे नभ भी झुक जाते हैं ।
    बूंद शबनमी नहीं प्यार तेरा जो पल उड़ जाए
    प्यार और त्याग जैसे सबब ये सिखलाते हैं ।

    विवेक सिंघानिया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार विवेक भाई !

      Delete