धमाकों से धमकाता है पर इंसानी हौसला टूट नही पाता है ...
टूटे कैसे? किस तरह पेट में जिन्दा ज्वालमुखी वो पालता है ।
मजहबी आग तो शीतल कक्ष में बैठा बन्दा लगा पाता है ...
वो जल रहे हैं, अपनी आग से !
वो जल रहे हैं, अपनी आग से !
उन पर लपटों से फर्क नही पड़ पाता है ।
झुलसा के खाक तो महँगाई करती है !
बम भला क्या जले को जला पाता है ?
बडे मुआवजों की घोषणायें होतीं ...
घर से बंधी आस लिये, दफ़्तर पहुँच के,
चक्कर के लम्बे चक्करों में पड़ जाता है |
भर जाती हैं, किताबी बहियाँ दफ़्तरों में
राशि चचेरे /मौसेरे को बाबू/अधिकारी दिलवाता है ।
आतंक किसे उड़ायेगा मेरे देश में ...
तंत्र खुद पंतग सा जन-जन को उड़ाये चला जाता है ।
कल्पनाओं-परिकल्पानों में संतरंगे गगन सजे !
जमीन तो लहुलुहान इंसान किये चला जाता है ।
चुनावी दौर में फरेबी भीड़ लगाते नेता !
वैसे ही फरेब का भाषण दे कर निकल जाता है |
भाषण ही जैविक बम बन गये हैं ...
सुन कर ही आम इंसान जल के भस्म हो जाता है ।
सब पर कर्ज चढ़ा इतना कि !
राशन का रास्ता छिपते-छुपाते तय करता है ।
हालातों से टूट कर, राहत की चाहत लिये,
बंदा कुंडलियाँ और हथेली पढ़वा के लुटा जाता है ।
क्या कहें ........?
कैसे एक चमन, वीराने में तब्दील हो जाता है !
अनुराग त्रिवेदी "एहसास"
* अपने विचार अवश्य लिखें , मेरी मेल आई डी है : ehsaascreation@gmail.com
वाह! बहुत खूब! बहुत कटु, परन्तु सत्य.
ReplyDeleteसादर
नीरज'नीर'
www.kavineeraj.blogspot.com
राजनैतिक और सामाजिक ढाँचे का तार-तार उधेड़ डाला .....अब नेता और समाज कहाँ मुँह छुपायेगें ???
ReplyDeleteनीरज जी : बहुत बहुत आभार ! आपकी टिप्पडी प्रसन्नता के साथ मन में खुशी लाई लगा जैसे बडे भाई निरेन्द्र सिंह " नीर" जी ने भी आशीष वचन कह दिये । बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteसादर
अनुराग एहसास
शिखा दी " गुरु जी "
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सर्वप्रथम बहुत बहुत आभार मेरे इंकायन्वे सदसय बनने का !
हर्दय से सभी का स्वागत ...
शैली, शिखा दी, स्वाती, रुपम , उत्कर्ष जी , आनंद मुखी जी ..
और पंखुरी गोयल मेंम ...
गुरु जी , यदि ऐसे ही होसला बढाया जाये, झिझक की दिवार तोड के अभिव्यक्ती बहार आती और साझा की जाती हैं ।
ऐसे ही आशीष वर्षा अनवरत करते रहें सभी इसी आशा और सबके लिये शुभकामना के साथ ।
सादर
अनुराग त्रिवेदी एहसास