कैसे बुजुर्ग सवाल खूंटी में टांग आते हैं !
रहती नही फिक्र उन्हें फिर,
नींद की तगड़ी खुराक ले, सुबह उठ जाते हैं ।
कैसे वो अपने बुजूर्ग जीते !
और हम जीते जी जिन्दगी नरक बनाते हैं ।
हैरत हुई, सुन कर मुझे !
पर सच है ऐसे ही नही वो बुजुर्ग हो जाते हैं ।
दिन मशक्कत से गुजारते हैं,
रातों को ख्वाब फिर वो नया सा सजाते है ।
क्या देखा है तुमने उन्हे कभी ?
घर में आते ही झुर्रियों से मुस्कुराते हैं ।
खिल पड़ते पोपले गाल उनके,
नंदू को कंधे पर बिठा घोड़ा बन जाते हैं ।
आज के नये दौर में हमें,
ऐसे भरे पूरे परिवार किधर दिख पाते हैं ?
घर के सदस्य घर में ही,
सीमांकन में बँट, कट कर रह जाते है ।
एक को दूजे के लिये फुर्सत नही,
बस एक दूजे को खरी खोटी सुनाते हैं ।
वो बूढ़ा दरख्त कहता है !
मनुष्य ही कलयुग को निमंत्रण दिये जाते हैं ।
खुब हुआ तो देखिये उन्हे !
इधर-उधर भीड़ लगा भंडारे/लंगर लगाते हैं ।
ये नेक दिल श्रीमान ऐसे हैं !
जो गरीब की बोटी,बेटी नोच हिसाब में चढ़वाते हैं ।
तो कहो ... ! क्या है सवाल ?
हम एक टहनी झुकाते, और न्यौता तुम्हे दिये जाते हैं ।
टांग दो सवाल वो सारे के सारे,
जो ज़ेहन में तुम्हारे अपलक अनवरत आते है ।