"ज़िंदगी .....! जो एहसास खास बनाती है .... जज़्बातों में उतर निखारे जाती है । ज़िंदगी .....! फकत नाम न रह जाये ....लम्हा-लम्हा जो एहमियत अपनी बढ़ाती है ।"
Monday, 29 October 2012
Monday, 8 October 2012
कोमल हृदय परिन्दा
रह रह छाती फोड़ निकलता है , दिल
आखिर कैसे उड़ेगा ???
कोमल सा हृदय परिन्दा है , दिल
टूटी टाँगों पे कैसे ठहरेगा ??
दूर तक खामोशियाँ फैली....
किससे दर्द अपना कहेगा ???
रह रह छाती फोड़ निकलता है , दिल
कैसे उड़ेगा...?
हवा के ज़ोर से टूटी गर्दन ,
परों के ज़ोर पे क्या खाक उडेगा ....?
इसने समझा उसे, ..... उसने समझा उसे...
बेकार क्यूँ हिसाब रखेगा..?
टूटे - झूठे अरमानों - वादों की ,
यादों की टहनियों पे जा बैठेगा ....
रह रह छाती फोड़ निकलता है , दिल
आखिर कैसे उड़ेगा ????
आखिर कैसे उड़ेगा...????
..........अनुराग त्रिवेदी "एहसास "
Tuesday, 2 October 2012
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