यदि समानता की बात कहें तो कब
नर नारी के समकक्ष हो पाता है ?
नारी ही प्रधान है ! समयकाल
की चुनौतियों में ही स्पष्ट हो जाता है ।
क्षणिक आलिंगन में निवृत हो, फिर करवट ले मुँह घुमाता है !
मादा की तरह बीज को सहेज कब
अपना दायित्व निभाता है ?
नर का योग, सिर्फ परमानन्द की भूख ...!
सृजन का जिम्मा तो सिर्फ नारी
के ही हिस्से आता है ।
उसका धीरज- स्नेह ही विकट
परिस्थितियों में खरा उतर पाता है
नर ... !
अन्धत्व में वशीकृत होकर
आकर्षण में गिरता और संभल ना पाता है ।
नारी ही असल पुरुषार्थ का
अर्थ समझा पाती है ...
पुरुष डग- डग भ्रमित हो, चकराता और भटक जाता है ।
कैसे कोई सामानता के परिमाप
स्थापित करे ?
नारी ही तो युग- युगांतर से
निर्माण का प्रथम सूत्र है,
हर शाश्वत कथन में यही कहा
जाता है ।
नैतिक मूल्य हो या फिर जीवन
दर्शन ! नर नारी के समकक्ष तो क्या
... दूर दूर तक,
स्पष्ट नही दिख पाता है
....।
इतनी विषमताओं के बाद भी कैसे समानता
की बात कहें ?
जबकि चिर काल से, समानता का ही सिद्धांत कहा जाता है ।
:अनुराग त्रिवेदी ...एहसास
Watever u do, u do it wth grace, style warmth & smile! **Happy Women's Day! **