Wednesday 18 July 2012

आखिर, जो करते करते हैं और.........किया क्या करते है ??

हम हकीमों को नुस्खा देने की तमीज़ रखते हैं ,
बेशक हम पतलून पहनते, खीसे नही रखते हैं ,
हमारी कमीज़ पर सिलवटें नही आ पाती हैं ,
हुनर बडी चट्टानों को उठा फ़ेंकने का रखते है ,

भले .. ऐहतराम न हो , तुम्हे.......
भले, इत्त्फाक न हो , तुम्हे........

हम गमों को भेड़-बकरी की तरह चराने की जुस्तज़ू रखते है |

**
बडे हवाले देते हो ना ख़ुदा की ख़ुदाई के,
पर साहिबान! न जाने कितने फरिश्तों को जेब में लिये घूमते हैं...
ख़ाक डालो, बन्दगी के पुराने फ़लसफ़े को
मेरी नज़र में, ज़हीन वो ,
जो चन्द लम्हों के लिये
गरीब के बच्चे का दिल रखते हैं.....
ख़ुशी से कमज़ोर का हाथ थाम लो
यही इंसानियत का सबक दिया करते हैं |

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तो बोलो....??
पत्थरों में ख़ुदा ढूँढने वाले ..

क्या ? बुरा हम किया करते है ??
हाँ !!!
..
बोलो भी ... ?

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नही है, गुज़ारिश कोई साथ आये
जो सफर पे पहला कदम अकेले निकाला
फिर मंजिल के लिये अकेले सफ़र करते हैं ..
आफ़रीन !!!!
जल्द मुकम्मल हो सफ़रे रोज़ ..
मंजिल तक जाते हुये यही दुआ करते है ..
है नही साथ कोई तो क्या..
अपना हमकदम, हमसफर, हमराज
एक-एक तलवे पे पढ़े छालो को बना लिया करते हैं ..
सभी फट कर किसी ज्वालामुखी से लावे बहाते
ऐसा लगे, जैसे छाले भी पुराने दोस्त की तरह शिकायत किया करते हैं
महरुम रहो मलहम से तुम ,
हम तुम्हे नज़ारने मे ..
और तेज़ .. और तेज़ .... रफ्तार दिया करते हैं
आखिर, जो करते करते हैं और...........

किया करते हैं ????

अनुराग त्रिवेदी "एहसास " 

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