कुदरत भी क्या कयामती सूरत दिखाती है ,
मेरे चोट के ऊपर चोट बारहाँ लग जाती है ।
दर्द के साथ ही सौदेबाजी करता हूँ , अब
राहत की चाहत भी मुझे नही हो पाती है ।
नही है ख्वाहिश मलहम कोई लगायेगा,
ज़ख्मों से इश्क करना अदा बन जायेगा ।
बडे नेक दिल बनते हो ना, अभी तो अनदेखा किया,
बस तुम्हारी नज़र बदली और चोरी पकड जाती है ।
जज़्बाती बन मिलते थे किस कदर मुझसे ,
पर करतूत तुम्हारी खिल्ली उडाती है ।
** : छोडो भी ना उस्ताद ! ये क्या ले कर बैठ गये ?
मेरे खुले ज़ख्मों से यही आवाज़ समझाने आती है ।
कहते हैं :
एक से एक मिला कर ग्यारह होता है ,
हमारी दोस्ती ऐसी है , अब ...
किसी और का साथ गँवारा नही होता है ,
बस ख्यालो की मियाद बढी ,
और सोच बदल जाती है ।
सच कहूँ तो आह! निकल आयेगी हलक से ,
असल ज़िन्दगी की तरावट तो , ज़ख्मो के जायके में आती है
खाटी, तीखी, मसालेदार ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी कहलाती है........
अनुराग त्रिवेदी ...
दर्द के साथ ही सौदेबाजी करता हूँ , अब
ReplyDeleteराहत की चाहत भी मुझे नही हो पाती है
सच कहूँ तो आह! निकल आयेगी हलक से ,
असल ज़िन्दगी की तरावट तो , ज़ख्मो के जायके में आती है ...
बहुत भावुक लेखन किया है आपने... हर पाठक शब्दों की गहराई को बहुत ही शिद्दत के साथ महसूस कर सकता है...बहुत बहुत बधाई
हर्दय से आभार !!!!!!!!!!
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