वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये, साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे ? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
जब शिकायत करना है , तो किसी को कमज़ोर बताया जाता है ।
गिरगिट की तरह बदलती है रंग जिन्दगियाँ देखो तो !
आज हँसते को रुलाते, रोने वाला कभी किसी की खिल्ली उड़ाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
गिरगिट की तरह बदलती है रंग जिन्दगियाँ देखो तो !
आज हँसते को रुलाते, रोने वाला कभी किसी की खिल्ली उड़ाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
अपना समझ किसी की तरफ हाथ बढ़ाओ !वो झटक कर बढ़ जाता है ।
ये दौरे जहाँ रफ्ता रफ्ता कितना अजीब हो चला है कि देखो तो !
ये दौरे जहाँ रफ्ता रफ्ता कितना अजीब हो चला है कि देखो तो !
नकाबपोश इँसा ,नकाबों को हर रोज इकट्ठा किये जाता है ।
बेकार है .... दौरे जहाँ में सरफराज़ी से शिकायत करना अब तो !जब शिकायत करना है , तो किसी को कमज़ोर बताया जाता है ।
गिरगिट की तरह बदलती है रंग जिन्दगियाँ देखो तो !
आज हँसते को रुलाते, रोने वाला कभी किसी की खिल्ली उड़ाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
गिरगिट की तरह बदलती है रंग जिन्दगियाँ देखो तो !
आज हँसते को रुलाते, रोने वाला कभी किसी की खिल्ली उड़ाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
ये नही आज हुआ ऐसा ... ये तो युगों-युगों से यही होता आया है ...
कलयुग तो चरम का भरम है , ये तो हर युग की माया है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
यही होता था..............
होता है ............
और होता चला जाता है ............।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
वक्ते मुश्किलात में चन्द लम्हों के लिये साथ जब कोई खड़ा हो जाता है ...
ना जाने कैसे? कब ? उससे अपनापन अचानक से बड़ा हो जाता है ।
अपना समझ किसी की तरफ हाथ बढ़ाओ !वो झटक कर बढ़ जाता है ।
ये दौरे जहाँ रफ्ता रफ्ता कितना अजीब हो चला है कि देखो तो !
ये दौरे जहाँ रफ्ता रफ्ता कितना अजीब हो चला है कि देखो तो !
नकाबपोश इँसा ,नकाबों को हर रोज इकट्ठा किये जाता है ।
इंसानियत की इबारत है , अज़नबियों में रहम दिल कोई मिल जाता है ...।
बहुत गहन भाव छुपे हैं आपकी इस रचना में..
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति अनुराग जी...
अनु