Tuesday 24 July 2012

क्यूँ मेरी ख्वाहिशों को तमीज़ नही होती..???


क्यूँ मेरी ख्वाहिशों को तमीज़ नही होती,
चाहें वो तारा जिसकी तर्वीज़ नही होती ।

तोड़ तो लूँ, , पर जो नीयत है वो तज्वीज़ नही होती,
पहनूँ, लिबाज़ असल सा, वो कमीज़ नही होती ।
वो चार गज़ का कफन है .........
जो अभी पहनूँ तो दरकारे मुफ़ीज़ नही होती ।

ज़िन्दगी छोड कर ज़िस्म में रुह बनी रहे.........
ऐसी कोई चीज़ कायनात में इल्म पे काबिज़ नही होती ।

खुद के ख़ामियाज़े, खुद को ही भुगतने पड़ते हैं.........
बारहाँ मिले हकीम का नुस्खा, ऐसी रहमतेमरीज़ नही होती ।

कोई भी लगाओ तरकीब, तकरीबन भी न बन पाये,
अगर ख्वाहिशों को तमीज़ नही होती .............।




तर्वीज़ =प्रचारित,प्रचलित
तज्वीज़ = कोशिश,योजना,प्रयत्न,फ़ैसला
मुफ़ीज़ =यश देने वाला
रहमतेमरीज़=मरीज़ के लिये दुआ

 अनुराग त्रिवेदी .. एहसास तारिख : 24/07/2012


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