"ज़िंदगी .....! जो एहसास खास बनाती है .... जज़्बातों में उतर निखारे जाती है ।
ज़िंदगी .....! फकत नाम न रह जाये ....लम्हा-लम्हा जो एहमियत अपनी बढ़ाती है ।"
Sunday, 18 September 2011
ज़िंदगी में बेशुमार मिठास रहती है ....!
ज़िंदगी प्याज़ के गलूदे के समान होती है जितना मर्जी नोच लो ......! ज़िंदगी ही ज़िंदगी बेशुमार इसमें रहती है । हम ही इसे गोल-गोल, टेढ़ी-मेढ़ी, जलेबी की तरह बना देते हैं .....! पर आख़िरी में मिठास ही मिठास रहती है ।
eham-dul-lilha ! etna umnda .... kis ko sabse acha bolu yaar ... samjh nahi aa raha hai
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