Sunday, 18 September 2011

ज़िंदगी में बेशुमार मिठास रहती है ....!





ज़िंदगी प्याज़ के गलूदे के समान होती है 
जितना मर्जी नोच लो ......!
ज़िंदगी ही ज़िंदगी बेशुमार इसमें रहती है ।

हम ही इसे गोल-गोल, टेढ़ी-मेढ़ी, 
जलेबी की तरह बना देते हैं .....!
पर आख़िरी में मिठास ही मिठास रहती है ।

1 comment:

  1. eham-dul-lilha ! etna umnda .... kis ko sabse acha bolu yaar ... samjh nahi aa raha hai

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